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शुक्रवार, 31 मई 2013

सामूहिक चुदाई,sex in group

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सामूहिक चुदाई


साथियों,पिछली बार मैंने विवेक से क्रिसमस के दिन चुदवाया था.उसके बाद मैंने होली पर ऐसी चुदाई करवाई जिसकी स्टोरी आप लोग अवश्य सुनना चाहेंगे.होली के मौके पर मेरी भाभी मेरे वोर्किंग प्लेस पर आई थीं.मेरी भाभी भी बहुत रंगीन मिजाज़ हैं.मेरी उनकी बहुत पटती है.भाभी ने कहा ," रानी इस होली को यादगार बना दो." मैंने उनसे पूछा कि "आपको क्या पसंद है?"
भाभी  ने  कहा,"देखो रानी!,इस बार की होली दमदार होनी चाहिए ताकि ये हमेशा याद रहे."
मैं बोली,"आप जो कहिये वह आपको उपलब्ध करवाती हूँ.आप कहकर तो देखिये."
"सर्व प्रथम मुझे दारु चाहिए उसके बाद तुम्हारी चुत"भाभी ने मुझे चकित कर दिया
मैंने आश्चर्य से पूछा."चुत  आपके पास भी है फिर मेरी  चुत क्या करेंगी?"  "मैं तुम्हारे चुत की चटनी बनाकर खाऊंगी,कोई ऐतराज़?" "अरे नहीं भाभी मुझे भला क्या ऐतराज़ हो सकता है?मैं जानती हूँ कि आप मुझे मज़ा ही दिलावायेंगी ,मेरा कोई नुकसान  तो नहीं करेंगी."
    मैंने भाभी से कहा कि "मैं रम  की दो बोतल मंगवा देती हूँ,काम चल जायेगा न?"
भाभी ने कहा,"हाँ,काम चल जायेगा." मैं बाज़ार से भाभी के कहने के अनुसार मटन  और दारू ले आई,लेकिन मेरी समझ में ये नहीं आया कि दो लोगों के बीच ढाई  किलो मटन क्यों मंगवाई हैं.थोड़ी देर के बाद ये बात मेरी समझ में आ गयी.मैंने देखा  कि भाभी के पास दो लोग बैठे हैं.मेरा दोस्त विकास भी आने वाला था.मैंने नौकरानी को मटन बनाने को कहा. तब तक विकास भी आ गया.तीन मर्द और दो औरतें ड्राइंग रूम में बैठकर हमलोग  दारू पीने लगे.भुने हुए काजू,नमकीन आदि मज़े को दुगुना कर रहे थे. उन लड़कों के नाम थे करीम और महेश.  मैंने भाभी  से कहा ,"क्या भाभी,आज तो लग रहा है आप घर से  ही तैयारी करके आई हैं.  ग्रुप सेक्स का इरादा बनाकर आई हैं."
"हाँ इसीलिए मैं कह रही थी कि इस होली को यादगार बना दो"
करीम बोला,"रानी जी,आपकी भाभी ने मुझसे आपकी खूबसूरती के बारे में जैसा बयान किया था आप बिलकुल वैसी ही हैं.इन्होने आपकी चुत की बड़ी तारीफ़ की है .अब देखना है कि चुत खरी उतरती है या नहीं."
"एकदम मस्त है यार.ये बहुत कम चुदवाती है न.दूसरे ये कोई एक्सरसाइज़ भी करती है जिससे इसकी चुत का कसाव बरक़रार रहता है."
महेश बोला,"इसमें सस्पेंस की कौन सी बात है,अंदाजा लगाने की क्या ज़रुरत है?.अभी देख लेते हैं."
और महेश ने मेरी सलवार का नाड़ा खोल दिया.नीचे मैंने पैंटी नहीं पहना था. मेरी चुत नंगी हो गयी.
महेश बोला,"वाकई यार!गज़ब की कसी हुई चुत है."
इसी के साथ सब लोग अपने अपने कपडे निकल  दिए. मैं करीम का लंड चूसने लगी,भाभी विकास का लंड चूस रही थी,महेश मेरी चुत चूसने लगा.करीम सोफे पर बैठा था.मैं झुक कर उसका लंड अपने मुंह में ले रही थी.झुकी होने की वजह से पीछे से मेरी चुत का मुंह खुला था.जिसको महेश चाट चाट कर एकदम गीली कर चुका था.मैं महेश का लंड देख नहीं रही थी उसने पीछे से अपना लंड मेरी चुत के बिल में घुसा दिया मेरी तो जैसे जान ही निकल गयी. उसका लंड मेरे स्टैण्डर्ड और  अंदाज़े से ज्यादा मोटा और लम्बा था.मैंने लगभग चिल्लाकर कहा  कि जल्दी लंड निकालो मेरी चुत बर्बाद हो जाएगी.मैं इतने मोटे लंड से नहीं चुदवाती हूँ.लेकिन दोस्तों! आप तो जानते ही होंगे कि जब लंड को चुत और चुत को लंड मिल जाये फिर किसकी कौन सुनता है.अभी तक मैं बहुत मोटे और लम्बे लंड से नहीं चुदवाई थी.किन्तु जब ८ इंच का लंड चुत में घुस गया फिर तो चुदवाना ही था.उधर भाभी विकास का लंड चूसते चूसते थक गयी तो बोली,"अब मैं चुदवाना चाहती हूँ.कौन मेरी चुत लेगा पहले?" विकास ने कहा,"भाभी मैं तुम्हारी चुत में लंड डालूँगा सबसे पहले."
   "चलो फिर लेट जाओ." और विकास अपना लंड खडा करके बिस्तर पर लेट गया.भाभी ने विकास के ऊपर जाकर अपनी चुत को फैलाया और लंड को अपनी चुत में घुसा लिया.जाबी भाभी धक्के लगाने लगी तो मैं उनकी ताकत देखकर  हैरान रह गयी.क्या गपागप की आवाज़ आ रही थी ! वाह भाभी वाह!
   करीम ने कहा, "रानी,अब लंड को अपनी बिल दिखाओ इसको अब बिल चाहिए." मैं बोली,"अरे यार ,महेश तो पीछे से पेल ही रहा है."
"तो गांड में ही घुसाने दो."
"नहीं , मैं गांड नहीं मरवाती हूँ."
भाभी हमलोगों की बातें सुन रही थी. वे बोली,"करीम जी,मेरी गांड में अपना लंड पेल दो न.मेरी गांड का छेद पीछे से खुला भी है."
करीम को  मानो मुंह मांगी मुराद मिल गयी भाभी ने उछलना थोडा सा बंद किया और करीम ने भाभी  की गांड में अपना लंड घुसा दिया और भाभी की कराह निकल गयी किन्तु थोड़ी ही देर में भाभी मज़े ले लेकर अपने  दोनों छेदों को आनंदित कर रही थीं. मुझको नशा चढ़ा हुआ था और महेश  का लंड मेरी चुत का बाजा बजा रहा था.चूँकि मैं चुदाई कम करवाती हूँ इसलिए चुदवाते वक़्त मुझे बहुत मज़ा आता है.करीब बीस मिनट चोदने के बाद महेश का पानी निकलने वाला था इस दौरान मैं तीन बार झड चुकी थी. तब वो बोला,"रानी,कहाँ गिराना है?" मैं बोली,"चुत में ही झड जाओ मेरी जान,जो होगा देखा जायेगा."
उधर भाभी चीख  रही थीं ,"पेलो... फाड़ दो मेरी चुत और गांड दोनों को,
  चोदो और जोर से चोदो.हाय!मैं आ गयी आह....ऊह्ह......ओह्ह.....सी .....आह..  करीम ने अपना पानी भाभी की गांड में उड़ेल दिया.और लंड निकल कर खुद सोफे पर बैठ गया.तभी नौकरानी आ गयी और बोली कि  खाना तैयार हो गया है.लेकिन वो तुरंत वापस जाने लगी तब तक मैं भी चुदवा चुकी थी मैं भी सोफे पर बठी थी.मैंने नौकरानी को बुलाकर कहा,"गुड्डी,मेरे पास आओ".वो साड़ी पहनी थी.मैंने उसे अपने सामने बैठने को कहा और उससे पूछा,"हम लोगों के इस प्रोग्रामे में शामिल होगी?"
उसने शरमाते हुए अपनी साड़ी के पल्लू का कोना दांतों से दबा लिया. मैंने कहा,"शरमाओ मत,क्या तुम्हारा आदमी तुम्हे ठीक से चोद पाता है,कितने दिनों पर चुदवाती हो?"इसी दरम्यान मैंने उसकी साड़ी  खींचकर निकाल दी और वह  ब्लाउज व पेटीकोट में आ गयी वो बोली,"क्या बताऊँ  बीबी जी,शर्म आती है मुझे." मैंने उसका पेटीकोट भी निकल दिया अब वोह सिर्फ ब्लाउज पहने हुए थी.मैं उसकी चिकनी चुत को सहलाने लगी.उसका चेहरा एकदम लाल हो गया और मैंने देखा कि उसकी चुत भी गीली हो गयी.भाभी ने कहा,"चलो रानी,खाना खा लिया जाये तब फिर चुदाई चालू किया जायेगा." सभी ने इस बात का समर्थन किया.गुड्डी अपना पेटीकोट पहनना चाह रही थी मैंने उसको न सिर्फ मना किया बल्कि उसका ब्लाउज भी खोल दिया और कहा."कोई भी अपने कपडे नहीं पहनेगा सभी लोग नंगे ही खाना खाएंगे.सभी लोगों ने एक एक पेग दारू पिया और मटन खाकर बिस्तर पर आकर आराम करने लगे.मैंने डी वी डी पर एक ब्लू फिल्म लगा दिया. गुड्डी भी हम लोगों के साथ साथ थी.मैंने उसको अपने पास ही बिठाया था और फिल्म में चुदाई के दृश्यों को देखकर सभी लोग गरम होते जा रहे थे.मैं गुड्डी की चुचियों को और उसकी चुत को मसल रही थी.इन चीज़ों से गुड्डी की बुर लंड खाने के लिए बेताब हो रही थी.उसने मुझको  जकड लिया और मेरे कान में फुसफुसाकर बोली,"बीबी जी अब रहा नहीं जा रहा है मुझसे.किसी को कहिये न! आकर मेरी चुत की गर्मी निकाल दे."मैंने उससे कहा'"जो तुम्हे पसंद हो उसको बोल दो.वैसे तो सब लोग तुम्हे चोदना चाहेंगे लेकिन यह तुम्हारे ऊपर  है कि तुम किससे पहले मरवाती हो?गुड्डी ने तीनों के खड़े लंडों का मुआयना किया और करीम की तरफ अंगुली उठा दिया.करीम गुड्डी के पास आ गया और चुम्बन आदि लेने लगा.चुत सहलाते हुए बोला,"कुंवारी हो क्या गुड्डी?" गुड्डी ने कहा,"नहीं मेरी शादी हुए दो साल हो गए लेकिन दो सालों में सिर्फ आठ बार चुदी हूँ वो भी केवल तीन इंच के लंड से. आप ही बताइये इस जवानी में दो साल की अवधि में आठ बर्ताबा चुदवाने से  इस चुत का क्या बिगड़ेगा.?"
करीम  ने कहा  कि, "मेरा लंड तो सात इंच का है.इससे तुमको बहुत मज़ा आयेगा." गुड्डी मदहोश सी होने लगी.करीम के लंड से खेलने लगी. और उसे सहलाने भी लगी.करीम ने मुझे इशारे करके बुलाया.मैंने उसके पास आकर पूछा,"क्या बात है करीम मियां?"करीम बोला ,मैं गुड्डी से अपना लंड चूसने को कह कह सकता हूँ कि नहीं?" मैंने गुड्डी की छुट को अपने हाथों से सहलाते हुए उससे कहा, "क्यों री! चुत तो तुम्हारी गीली हो चुकी है.लंड चूसना है?"

गुरुवार, 30 मई 2013

बिन ब्याही कुंवारी दुल्हन की सुहागरात

सुहागरात

प्रेषिका : श्रद्धा वैद्य
प्रिय पाठको, यह मेरी सच्ची कहानी है, दस साल पुरानी बात है, मैं अमरावती में रहती थी, पापा और
ममा नौकरी करते थे। मैं उनकी अकेली लाडली बेटी थी।
वे दफ़्तर चले जाते और मैं स्कूल ! शाम को हम घर आते, हमारा घर काफी बड़ा था इसलिये पापा ने
सोचा कोई किरायेदार रख लेते हैं।
दो तीन दिन में ही एक युगल घर देखने के लिये आए, रेखा चाची और दिनेश चाचा... दोनों बहुत अच्छे थे,
चाची की उम्र लगभग 25 थी और चाचा की लगभग 27 साल होगी। उनकी कोई संतान नहीं थी और
वो मुझे बेटी जैसा ही समझते थे।
वे मुझे बहुत अच्छे लगते थे, चाची तो मुझे बस दूसरी माँ लगती क्योंकि जब भी ममा मुझे डाँटती तो वो मुझे
लेकर अपने घर जाती, मेरी पसंद की चोकलेट और गुलाबजामुन देती। चाचा भी मुझे बहुत प्यार करते,
कभी नहीं डाँटते !
मार्च 2003 की बात है, उन दिनों मेरी परीक्षा चल रही थी, पढ़ाई में मैं ठीक थी और पेपर भी अच्छे
हो रहे थे, चाची मुझे घर आने के बाद खाना देती और पढ़ाई में भी मदद करती !
लेकिन अचानक एक शाम को फोन आया कि भोपाल में मेरे सगे चाचा अनिल एक दुर्घटना के शिकार हो गए
हैं। योगिता चाची वहाँ अकेली हैं, पापा और ममा को जाना ही था, पर मेरा आखरी पेपर दो दिन बाद था,
ममा और पापा परेशान थे, जाना जरुरी था और मुझे अकेला कैसे छोड़ें !
तभी रेखा चाची और दिनेश चाचा वहाँ आये और बोले- चिंता की कोई बात नहीं, हम श्रद्धा को सम्भाल
लेंगे।
ममा पापा का टेन्शन कम हो गया। मैं बहुत खुश थी क्योंकि मुझे चाचा-चाची पापा–ममा से
भी ज्यादा पसंद थे।
पापा-ममा आठ दस दिन के लिये चले गये।
मेरा आखरी पेपर था, चाची ने कहा- आज ठीक से लिखना, आखरी पेपर है। घर आने के बाद हम
आईसक्रीम खाने जायेंगे और मैं तुम्हारे लिये गुलाबजामुन भी बनाऊँगी।
चाचा मुझे स्कूल छोड़ने गए और लेने के लिये भी आये। घर में चाची ने गुलाबजामुन बनाये थे, मैंने कई गुलाबजामुन खाये।
दोपहर में मैं चाची के पास लेटी तो चाची ने पूछा- पेपर कैसा रहा?
मैंने कहा- बहुत बढ़िया !
तभी चाची ने कहा- यह तो सिर्फ कागजी परीक्षा थी, तुम्हें जीवन की परीक्षा के बारे में पता है?
मैंने कहा- नहीं !
चाची ने कहा- ममा ने तुम्हें कुछ नहीं बताया?
मैंने कहा- नही !फिर चाची ने कहा- माहवारी के बारे में कुछ बताया?
मैंने कहा- हर महीने में मुझे बहुत तकलीफ होती है, लेकीन ममा ने इसके लिये कुछ भी नहीं बताया।
चाची ने कहा- तुम्हारी ममा बहुत व्यस्त रहती हैं, उन्हें पता ही नहीं कि बेटी कब जवान हो गई? लड़की को जीवन में बहुत सारी कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है जो अगर पता न
हो तो पूरे जीवन में बहुत तकलीफ उठानी पड़ती है। अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें इसके बारे में आने वाले एक हफ़्ते में सब कुछ सिखा दूंगी और कोई फ़ीस भी नही लूँगी।
कुछ नया सिखने को मिलेगा, सोच कर मैं झट से मान गई।
फिर हम सो गये।
शाम को चाचा घर आये, चाची ने मुझे सब सिखाने की बात कही। मैंने भी चाचा को कहा- हाँ ! आप दोनों मुझे सिखा दें।
उन्होंने कहा- तुम अपने पापा और ममा को इसके बारे में कुछ नहीं बताओगी।
मैं मान गई। शाम को पाँच बजे चाची मुझे बाज़ार ले गई, वहाँ उन्होंने मेरे लिये शॉपिंग की पर ऐसी शॉपिंग ममा ने कभी नहीं की थी !चाची ने मेरे लिये काले रंग की सुंदर ब्रा और
पैंटी खरीदी, वीट क्रीम और कुछ सौंदर्य प्रसाधन खरीदे। मुझे मेरी पसंद की ढेर सारी चोकलेट भी खरीद कर दी। मैं खुश थी।
छः बजे हम घर पहुँचे। बाहर धूप के कारण घर आकर चाची ने मुझे नहलाया और शरीर की सफाई के बारे में बहुत कुछ सिखाया। शाम सात बजे उन्होंने मुझे कहा- आगे जाकर मुझे
लड़की के सारे काम सीखने पड़ेंगे।
नई ब्रा और पेंटी पहन कर मुझे थोड़ा अटपटा लग रहा था क्योंकि मैंने पहले कभी ब्रा पहनी ही नहीं थी और योनि के बाल साफ करने से थोड़ी खुजली भी हो रही थी। पर चाची ने
वहाँ क्रीम लगाई।
तब लगभग साढ़े सात बजे चाची ने कहा- आज मैं तुम्हें जीवन का सबसे बड़ा पाठ सिखाऊँगी।
बाद में उन्होंने मेरी सुंदर तैयारी की, उनके शादी के खूबसूरत फोटो दिखाये और कहा- आज मैं तुम्हें दुल्हन बनाऊँगी।
मैं भी मान गई।
उन्होंने कहा- हम तुम्हारी विडियो भी बनाएँगे और तुम्हारी ममा को सरप्राइज देंगे।
बाद में उन्होंने मुझे उनका शादी का जोड़ा पहनाया, मेरी फोटो भी खींची, मुझे नजर ना लगे इसलिये काला तिल गाल पर लगाया।
मुझे मजा आ रहा था। बाद में चाची ने मुझे कहा- शादी पहली रात यानि 'सुहागरात' सबसे प्यारी होती है। हर लड़की इस रात के लिये तड़पती है। जिंदगी का सबसे बड़ा सुख इस दिन
ही प्राप्त होता है।
उन्होंने मुझे कहा- क्या तुम वो आनन्द लेना चाहोगी? इसमें थोड़ा दर्द होता है पर मजा भी बहुत आता है। मैंने तो यह मजा तुम्हारी उम्र में ही कई बार चखा था और आज भी हर रात
चख रही हूँ।
मैंने तुरंत हाँ कर दी। सुहागरात में दुल्हन किस तरह बैठती है, कैसे अपने पति को बादाम का दूध पिलाती है, फिर कैसे शर्माती है, ये सब बताया और यह भी कहा- आज
इसका प्रैक्टीकल भी तुम से करवाऊँगी।
मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था।
फ़िर उन्होंने कमरा सजाया, कमरे में इत्तर छिड़का। शादी के जोड़े में मुझे बड़ी गर्मी लग रही थी लेकिन मैं चुप रही क्योंकि मुझे कुछ नया सीखना था।
बाद में उन्होंने मुझे बेडरूम में पलंग पर घूंघट लेकर बिठाया।
थोडी देर में वहाँ चाचा आ गये, उन्होंने भी उनके शादी के कपड़े पहने थे। आज वो बहुत ही अलग लग रहे थे। तभी सुंदर नाइटी में उनके साथ कैमरा लेकर चाची भी पहुँची और मुझे
बोली- यह तुम्हारी पहली सुहागरात है अपने पति (चाचा) और गुरु (चाची) के पैर छुओ।
मैं कपड़े सम्भाल कर पलंग से नीचे उतरी और चाचा के पैर छुए।
उन्होंने मुझे मुँह दिखाई के तौर पर 500 रुपये दिये। मैं खुश हो गई, फ़िर मैंने चाची के पैर छुए। उन्होंने आशीर्वाद दिया- ऐसी रात तुम्हारी जिंदगी में हर रोज आये !
और चुपके से मेरी चुम्मी ली और मेरे हाथ में तीन गोलियाँ देकर कहा- यह छोटी गोली तुम्हें बड़ी सहायता करेगी, इसे दूध के साथ ले लो और दूसरी गोली तुम्हें उत्तेजना प्रदान
करेगी, तीसरी गोली तुम्हें दर्द नहीं होने देगी।
चाची की दी हुई गोलियाँ मैंने बिना कुछ कहे दूध के साथ ले ली और पलंग पर घूंघट लेकर बैठ गई।
चाचा जी ने फिर मुझे प्यार से सहलाया मेरे बदन में मानो बिजली दौड़ गई। चाची जी ने सामने कैमरा लगा दिया। घूंघट के कारण कुछ दिख नहीं रहा था। चाचा चाची बात कर रहे थे,
हंस रहे थे- फ़ूल सी गुड़िया है धीरे करना, वैसे मैंने गर्भ निरोधक गोली और पेन किलर भी दे दी है।
चाचा ने अपने कपड़े उतार दिये और वो अंडर वियर में आ गये। धीरे से उन्होंने मेरा घूँघट खोला और उनके मुँह से शब्द निकल पड़े- बहुत सुंदर !
मैं सहम गई और आंखें बंद कर ली। उन्होंने मुझे बड़े प्यार से चूमा। पहले मेरे गालों को बाद में माथे को ! मेरी बिंदी हटा दी, कान के बूंदे और गले का मंगल सूत्र भी निकाल कर रख
दिया।
उसके बाद उन्होंने चाची को मेरी नथ निकालने को कहा। वे हंसी और बड़े प्यार से नथ निकाल दी।
धीरे धीरे वो मेरे पूरे बदन को छू रहे थे, मुझे गुदगुदी हो रही थी।
फ़िर उन्होंने मुझे खड़ा किया और मेरा घागरा खोल दिया। घागरा भारी होने से नीचे चला गया। मैंने पकड़ने की कोशिश की पर चाची ने मेरे हाथ पकड़ लिये।
फ़िर उन्होंने मेरे पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और मैं थोड़ी चिल्लाई।
पर चाची ने कहा- चुप रहो, विडियो बन रहा है।
अब मैं केवल ब्रा और पेंटी में खड़ी थी और मैने मेरा मुँह हाथ से ढक लिया। मुझे लज्जा आ रही थी पर गोली की वजह से उत्तेजना भी हो रही थी।
चाचा ने मुझे बाहों में भर लिया और जोर से दबाया। उससे मेरे चुचूक उनके सीने से रगड़ गये। चाची रसोई से बाऊल में गुलाबजामुन लाये और एक गुलाब जामुन मेरे मुँह में दे दिया।
चाचा ने मुझे बिस्तर पर लिटा दिया और एक झटके में मेरी पेंटी निकाल फेंकी।
मैं डर गई।
तभी चाची ने और एक गुलाबजामुन मुँह में खिलाते हुए मेरी ब्रा निकाल फेंकी। अब चाचा मेरी चूत को चाट रहे थे और चाची मेरे चुचूक चूस रही थी।
चाची कह रही थी- ऐसा ही होता है सुहागरात में ! चुप रहो और मजे लो।
चाचा की जीभ मेरी योनि में जाती तो मैं मजे से तड़प उठती। अब चाचा ने मेरे दोनों पैर ऊपर उठाये और चाची ने गुलाबजामुन का रस मेरी योनि में डाल दिया।
बहुत गुदगुदी हुई। फिर चाचा ने अपनी जीभ से वो रस चाट चाट कर चूस लिया। बाद में चाची ने दो गुलाबजामुन मेरी कड़क चूचियों में फंसा दिये और चाचा ने वो पूरी उत्तेजना से
चूस कर खाये। इसमें मेरे चुचूक पर उनके दांत भी गड़ गये।
चाची ने कहा- गोली खाई है तो दर्द कम होगा।
अब चाची ने मुझे नीचे उतार कर बैठने को कहा और चाचा पलंग पर बैठ गये।
अब उन्होंने कहा- आज मैं तुम्हे लिंग चूसना सिखाती हूँ। और उन्होंने चाचाजी का लिंग अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगी। उन्होंने मुझे वैसा ही करने को कहा पर मैंने मना कर
दिया।
तब उन्होंने चाचा के लिंग पर ढेर सारा चॉकलेट लगा दिया और कहा- इसे लोलीपोप समझकर चूसो ! बड़ा मजा आयेगा।
मैं मान गई क्योंकि मुझे चोकलेट पसंद थी।
चूसते-चूसते चोकलेट का स्वाद बदल रहा था। अब वो लिंग बहुत बड़ा हो गया था और चाचा मेरे बाल पकड़ कर उसे अंदर तक मेरे गले तक डाल रहे थे। मुझे सांस लेना मुश्किल
हो रहा था।
चाची मेरे चुचूक चूस रही थी।
चाचा ने कहा- मैं झड़ने वाला हूँ।
चाची ने कहा- अंदर ही झड़ जाओ।
और जोर से कुछ मलाई जैसी चीज मेरे मुँह में भर गई, वो मेरे गले तक पहुँची। मुझे ऐसा लगा कि मैं उलटी कर दूंगी पर चाची जी ने मुझे वो उगलने नहीं दिया और कहा- यह अमृत है
पगली ! गिरा मत ! पी ले !
और मेरा मुँह ऊँचा करके ढेर सारा गुलाबजामुन का रस मुँह में डाल दिया, मैंने वो रस पूरा निगल लिया।
अब चाची ने मुझे कहा- अब तुम्हारी अंतिम परीक्षा है। इसमें तुम्हे पास होना ही है, नहीं तो जिंदगी बरबाद है।
तब चाचा फिर से खड़े हुये। वो हंस रहे थे।
चाची ने मुझे बिस्तर पर लिटाया और मेरे दोनों पैर दूर-दूर कर दिये। अब उन्होंने भी अपने कपड़े उतार दिये।
उनके वक्ष बहुत बड़े और सुडौल थे। मेरे पैर हिले नहीं इसलिये उन्होंने उनको पलंग के दोनों पैरों से पेटीकोट के नाड़े से बाँध दिए।
अब दोनों पैरों में काफी अंतर था। अब वे मेरे सर की तरफ से आई और कहा- यह अंतिम परीक्षा है ! इसे जरूर पास करना श्रद्धा !
और उन्होंने उनके और मेरे वक्ष पर ढेर सारी आईसक्रीम लगा दी और कहा- बेटी, तुम मेरे चुचूक चूसना और मैं तुम्हारे !
अब यह सिलसिला शुरू होते ही चाचाजी ने अपना लिंग मेरी योनि में धकेला, मुझे थोड़ा दर्द हुआ और मैंने चाची के चुचूक को काट लिया।
चाची ने चाचा से कहा- धीरे !
और चाची ने भी प्यार से मेरे चुचूक को काट लिया और हंसी, अब चाचा को इशारा किया और उन्होंने मेरे होंठों को अपने होंठों से चिपका दिया।
अब चाचा ने एक जोर का धक्का दिया तो उनका बड़ा लिंग मेरी योनि को चीरता हुआ अंदर चला गया।
मैं जोर से चिल्लाई पर चाची ने अपने मुँह में मेरी आवाज दबा दी। मैं दर्द से तड़प रही थी।
तभी चाची ने थोड़ी बरफ मेरे शरीर पर रखी और मेरे उरोजों को सहलाने लगी और कहा- बेटी, तुम्हें माहवारी में हर महीने जिस काँटे से तकलीफ होती थी वो काँटा चाचा ने निकाल
दिया है। अब तुम्हें कभी तकलीफ नहीं होगी।
और उन्होंने मुझे चादर पर गिरा खून भी दिखाया और कहा- यही वो गंदा खून है जो हर महीने तुम्हें तकलीफ देता था। अब थोड़ा और सह लो, सब ठीक हो जायेगा।
बाद में उन्होंने चाचा के लिंग पर ढेर सारी क्रीम लगाई और कहा- इस क्रीम को तुम्हारे अन्दर लगा कर ये तुम्हारा इलाज कर देंगे, चिंता मत करो।
अब उन्होंने मुझे घोड़ी जैसा बैठने को कहा ताकि मलहम ठीक से लगे।
अब चाचा ने धीरे धीरे अपना लिंग अंदर डालना शुरू किया और मेरे नीचे लटकते स्तनों को चाची ने सहलाना शुरू रखा। अब मुझे दर्द कम लग रहा था और मजा आ रहा था।
बाद में चाचा नीचे लेट गये और चाची ने मुझे उनके लिंग पर बैठाकर ऊपर-नीचे होने को कहा।
वे कह रही थी कि आज तुम जी भर कर झूला झूल लो, कल का क्या पता?
फिर चाचा ने मुझे एक बार लिंग चूसने को कहा। इस बार मैं खुद मान गई और लोलीपोप जैसे उनका लिंग चूसने लगी, चाची प्यार से मेरे बाल सहला रही थी।
अब चाची ने कहा- यह तुम्हारी परीक्षा का अंतिम चरण है।
तब फिर एक बार चाचा ने जोर जोर से मुझे चोदना शुरू किया, अब मैं भी उनका साथ दे रही थी।
अंत में मैं थक गई और मुझे चक्कर आने लगे। तभी चाची ने मेरे मुँह पर ठण्डा पानी मार कर कहा- अंतिम परीक्षा में अगर फेल तो सब खत्म !
मैं जाग गई और जोर जोर से चिल्ला कर उनका लिंग अंदर ले रही थी। मेरे स्तन फ़ूल गये थे, मैं आवाज कर रही थी और एकदम से मैं झड़ गई, पर चाचा रुकने वाले नहीं थे, उन्होंने
अपनी स्पीड बढ़ा दी और चाची से कहा- मेरा निकलने वाला है ! क्या करूँ?
चाची ने कहा- अंदर छोड़ दो, मैंने गोली दे दी है।चाचा ने अपना गरम गरम वीर्य जोर से मेरे अंदर छोड़ दिया। मैं एकदम से अकड़ गई, मुझे बड़ी ही संतुष्टि मिली।
फ़िर हम सो गये।
मैं रात भर सोई। सवेरे 11 बजे मेरे नींद खुली तो देखा चाची मेरे बगल में दूध का ग्लास लेकर बैठी हैं। उन्होंने मुझे नहालाया, दूध पिलाया।
मुझे चलने में जरा दिक्कत लगी तो उन्होंने मुझे थाम लिया और कहा- पहले ऐसा ही होता है, आज शाम को हम गार्डन जायेंगे।
आज से मेरे लिये वो गुरु थी, उन्होंने मुझे बडा आनन्द दिया था। दोपहर में उन्होंने मुझे कहा- तुम्हारे लिये एक सरप्राइज है।
और उन्होंने कम्प्यूटर पर मेरी सुहागरात की विडियो लगा दी। मैं शरमा गई लेकिन हम दोनों ने वो बहुत एन्जोय की।बाद में उन्होंने मुझे कई काम की बातें बताईं जैसे सच्चा सुख कैसे
प्राप्त करें, कंडोम कैसे लगायें और कई सारे सेक्स के प्रकार और आसन... दस दिनों तक चाचा चाची मुझे यह आनन्द देते रहे। फिर पापा ममा आ गये। लेकिन मैं फिर भी उनके घर
जाती थी। दो साल बाद चाचा की बदली हो गई पुणे में।
आज भी मैं वो विडियो देख कर उनको याद करती हूँ।
आप मुझे अपने विचार जरूर लिखें, आपके विचार मेरे लिये बहुमूल्य ह

मौसी से सेक्स ज्ञान-

गर्मियों की बात थी, मेरी सगी मौसी मेरे घर आई हुई थी। मम्मी की सबसे छोटी बहन.... नाम है निम्मी।


रात को अचानक मेरी नींद खुल गई जब मुझे लगा कि कोई मेरा हाथ पकड़ कर खींच रहा है। अँधेरे में मैं समझ गया कि यह मौसी थी वो मेरा हाथ खींच कर अपने चूचियों पर रख कर ऊपर से अपने हाथ से दबा रही थी। मेरे बदन में करेंट सा लगा। मौसी अपने ब्लाउज के बटन आगे से खोले थीं, उनके बड़े बड़े चुच्चे मेरी हथेलियों के नीचे थे, उस पर मौसी का हाथ था और वो अपने हाथ से मेरी हथेली दबा दबाकर अपने चुच्चे मसल रही थी और हल्के से कराह भी रही थी।

मेरे लण्ड में आंधी-तूफ़ान चलने लगा, मैं बंद आँख से भी मौसी की खूब गोल-गोल भरी भरी चूचियों को महसूस कर सकता था, कई बार ब्लाउज से आधी बाहर झांकती देख चुका था उनको !

पर आज जाने क्या को रहा था मुझे? कामवासना का भूत मेरे सर चढ़ चुका था। मन तो किया कि ऊपर चढ़ कर मैं खुद मौसी की चूचियों को रगड़ कर रख दूँ और उनकी टांगों को फैलाकर उनकी चूत का सारा रस पी लूँ और उनकी टांगें फैला कर बुर में ऐसा लण्ड पेलूँ कि वो वाह-वाह कर उठें औररात भर अपनी टांगें न मिला सकें। लेकिन मेरे मन में डर था कि कहीं मौसी इतना सब कुछ न करना चाहती हों और वो घर में सब को बता दें तो?

यही सोच कर मैं सोने का नाटक करने को मजबूर होकर तड़पता रहा। मौसी ने मेरे हाथों को पकड़ कर अपने चुच्चे खूब मसलवाये फिर मुझे पकड़ कर अपनी और घुमा लिया और मेरे ओंठों को अपने अपने होंठों में लेकर चूसना शुरू कर दिया।

मैं अभी भी आँखें बंद किये था, मेरा लण्ड झटके पर झटके खा रहा था मेरे लण्ड की हालत समुन्दर में प्यासे मगर्मच्छ के जैसी थी। तभी मौसी ने अपनी एक टांग उठा कर मेरे ऊपर ऐसे रखी कि मेरा लण्ड उनकी गर्म-गर्म रान के नीचे दब गया।

मैंने महसूस किया कि उनकी मैक्सी कमर तक ऊपर थी। जीवन में पहली बार इतनी चिकनी टांग मैंने अपनी टांग पर सटी हुई महसूस की, बहुत ही गर्म और केले की जैसे चिकनी बेहद नरम जांघें थी, शायद एक भी बाल नहीं होगा उन पर।

मेरे लण्ड का पानी छूटने को हो गया पर डर गया कि मौसी सब जान जायेंगी कि मैं जग रहा हूँ। मैंने पूरी ताकत लगा कर लण्ड को कंट्रोल में किया हुआ था।

अब मौसी की चूचियाँ मेरे सीने से रगड़ रही थी, मेरे होंठ उनके होंठों के बीच में थे, उनकी एक बांह मेरे ऊपर से होते हुई मेरी पीठ को सहला रही थी। मेरे कुंवारे लण्ड की अग्नि परीक्षा हो रही थी और मैं ससम्मान इसमें उत्तीर्ण होने का भरसक प्रयास कर रहा था।

अचानक मेरे ऊपर उनकी नंगी टांग और चढ़ गई। मैंने धधकती चूत की गर्मी को अपने लण्ड के बिल्कुल करीब महसूस किया। मुझे कहने में कोई शर्म नहीं कि जीवन में पहली चूत का स्पर्श मुझे मेरी मौसी जी ने दिया। मेरी चड्डी में खड़े लण्ड का लालच मौसी से रोका न गया वो मेरे सात इंच के लण्ड पर चड्डी के ऊपर से ही हाथ फिराने लगी थी और लण्ड पर हाथ रखते ही वो कराह उठीं जैसे उनके सारे जिस्म के दर्द की दवा उन्हें मिल गई हो।

मेरा दिल बड़े जोर से धधक-धड़क रहा था, मेरे लण्ड में फड़कन को मौसी ने बखूबी महसूस किया था इसीलिए उन्होंने मेरे फड़कते लण्ड को कस कर अपने हाथों में मजबूती से जकड़ लिया।

दोस्तो, यह मेरी सहनशीलता का चरम था। बड़ी बड़ी झांटों वाली गद्दीदार पाव रोटी जैसी बुर का गर्म एहसास अपनी जांघ पर पाकर बड़ी बड़ी चूचियों से सटे होकर एक औरत के हाथ में लण्ड कितनी देर बर्दाश्त करता। मैंने भी सारी शर्म त्याग दी और चड्डी के अन्दर ही मौसी के हाथों में कसे कसे लण्ड ने पूरी धार से पानी छोड़ दिया। मैं ऊँ ऊ ऊं.. करके उनकी बाहों में एक बार मचला, फिर शांत हो कर लण्ड को आख़िरी बूँद तक झड़ने देता रहा।

मौसी अभी यही समझ रहीं थीं कि मैं उत्तेजित होकर नींद में ही झड़ा हूँ। उन्होंने मेरा लण्ड कस कर पकड़े रखा जब तक मैं पूरा झड़ नहीं गया। उनका हाथ चड्डी के ऊपर से गीला हो चुका था, मैंने अपनी जांघ पर उनकी चूत का गीलापन साफ़ महसूस किया वो भी झड़ चुकी थी। अपने हाथ में लगे मेरे लण्ड के पानी को चाट रही थी वो ! चुद तो नहीं सकी थी पर एक युवा मर्द के संपूर्ण अंगों से खेलने का सुख शायद उनको बहुत समय बाद मिला था।

वो बिस्तर पर मेरा किसी औरत के स्पर्श का पहला अनुभव था और औरत के जिस्म का सही पहला सुख...

मैं मौसी को उस रात चोद तो न सका, शायद अनाड़ीपन और शर्म के कारण ! पर अपने कसरती जिस्म का जो चस्का मैंने मौसी जी को लगा दिया था उससे मुझे पता था कि आने वाली सैकड़ों रातों में वो मेरे बिस्तर पर खुद आने वाली थी और मैंने भी सोच लिया था कि मौसी की सालों से बंजर पड़ी चूत के खेत में अपने लण्ड से न सिर्फ कस कर जुताई करनी थी बल्कि खाद पानी से उसे फिर से हरा भरा करना था।

मौसी को कस कर पेलने का अरमान दिल में लिए मैं गीली चड्डी में चिपचिपेपन को बर्दाश्त करता हुआ सो गया।
अगले दिन सुबह मौसी मेरे साथ इस तरह सामान्य थी जैसी रात में कुछ हुआ ही न हो।

मैं शुरू में तो उनसे आँख चुरा रहा था पर उनका बर्ताव देख कर मैं भी कुछ सामान्य हो गया पर...दिमाग पर मौसी का गदराया जिस्म छाया हुआ था। जीवन में पहली बार मैंने मौसी जी को दिन के उजाले में कामवासना की नज़र से देखा था। उनके एक एक अंग की रचना को पढ़ने की कोशिश कर रहा था और उससे मिलने वाले सुख की कल्पना कर रहा था।

उनकी गोल बड़ी बड़ी मस्त चूचियाँ, उठे उठे भारी चूतड़ हिलते हुए कूल्हों से लपकती दिखती गाण्ड की मोटी दरार... आज सब अंग सेक्स को आमंत्रण दे रहे थे।

सुबह के ग्यारह बज रहे थे, पापा ऑफिस चले गए थे और मम्मी स्कूल। छोटा भाई ड्राइंग रूम में कार्टून फिल्म देख रहा था।

मैंने मौसी से कहा- मौसी, मैं बाथरूम में नहाने जा रहा हूँ ज़रा आप आकर मेरी पीठ मल देंगी क्या?

"हाँ हाँ ! क्यों नहीं? ... तुम चलो, मैं आती हूँ !" वो हंस कर बोली।

मैं बाथरूम में चला गया, मेरा मन मौसी के स्पर्श के विचार से खुशी से धड़क उठा। मैं सिर्फ फ्रेंची में था, पानी में भीग कर तना हुआ लण्ड बिल्कुल मूसल दिख रहा था।

मैं ऐसे बैठा था कि मौसी जी की नजर आते ही मेरे लण्ड पर पड़े !

और वैसा ही हुआ, मैंने देखा दूर से आती मौसी की नज़र जैसे ही मुझ पर पड़ी, वो मेरे लण्ड पर ही जाकर अटक गई।

"आइए.. मौसी जी... !" मैं उनकी नज़र को अनदेखा करते हुए बोला- मेरी पीठ पर अच्छे से साबुन लगा कर मल दीजिये, अपने हाथ से बढ़िया से नहीं हो पाता है ना..

"अरे, तुम बैठे रहो, मैं देखना कितना बढ़िया से मलती हूँ.... !" कह कर मौसी मेरी पुष्ट पीठ को मलने लगी।

मेरे लण्ड में सनसनी शुरू हो गई, खड़े लण्ड को मौसी रह-रह कर निहार लेती थी। पीठ रगड़ते हुए वह बोली- लाओ, अब जब हाथ लगाया ही है तो पूरा ठीक से रगड़ देती हूँ ! अपने पैर इधर करो ! कह कर वो मेरे सामने बैठ गई।

मैं बिल्कुल उनके सामने था, वो मेरी जांघों को साबुन लगाकर मलने लगीं, अब वे मेरे तने और फूले लण्ड को खुल कर देख सकती थी और उनका हाथ पैरों को रगड़ते रगड़ते मेरी चड्डी तक पहुँच जाता था, उनकी उंगलियाँ मेरे लण्ड को स्पर्श कर लौट जाती थी।

नहाने में इतना मज़ा पहली बार आ रहा था, उनसे लण्ड छुवाने का मेरा मकसद तो पूरा हो रहा था वो भी मेरे लण्ड को उजाले में नंगा देखने को आतुर थी।

मौसी ने पानी डाल कर कर मुझे खूब नहलाया। मैं तौलिया लपेट कर चड्डी उतारने लगा लेकिन जानबूझ कर चड्डी उतारते समय तौलिया गिरा दिया, मौसी जी सामने ही खड़ी थी। मेरा मूसल जैसा लण्ड देख कर उनके होश उड़ गए, वे आँखें फाड़ फाड़ कर मेरा विशाल लण्ड देखती रही।

मैं बोल पड़ा- ओह... वेरी सारी मौसी जी...सारी...

"अरे बस..बस.. बचपन में कई बार देखा है तुम्हें ऐसे.. शर्माने की कोई बात नहीं है ! जाओ बैठो, मैं नाश्ता देती हूँ।"

"आप जाइए, मैं चड्डी धोकर डाल दूँ, फिर आता हूँ.. " मैंने कहा।

मैं कर दूँगी, तुम जाओ..." वो बोली और मेरी चड्डी उठाकर साबुन लगाने लगी..

मैंने देखा कि चड्डी में वीर्य के दाग साफ़ चमक रहे थे पर मौसी तो सब जानती थी इसलिए वो मुझसे बिना कुछ पूछे उन दागों को रगड़ने लगी।

मेरा लण्ड फिर झटके लेने लगा था... पर तभी काम वाली आ गई थी इसलिए अब तो मुझे बेचैनी से रात का इंतज़ार था जब मौसी जी मेरे पास लेटने वाली थी !

दोपहर में मम्मी पर आ गई इसलिए मैंने अपने एक दोस्त के घर जाकर ब्लू फिल्म देखी, शाम को खाना खाकर जैसे ही सब सोने के लिए ऊपर छत पर गए तो मैंने थोड़ी देर के लिए किताब खोली पर मन कहीं ओर था इसलिए जल्दी ही किताब एक ओर रख कर मैंने लाईट बुझा दी और लण्ड हाथ में पकड़ कर मैं लेट कर मौसी के आने का इन्तज़ार करने लगा।

मैंने वैसलीन की शीशी पहले से सिरहाने रख ली थी, मुझे पूरा विश्वास था कि आज मेरे मूसल जैसे लण्ड को देखने के बाद मौसी की चूत में खुजली जरूर हो रही होगी।

ऊपर मौसी की बातें करने और हंसने की आवाजें आ रही थी, मैं बेचैन सा करवटें बदल रहा था।

करीब एक घंटे के बाद मैंने किसी के छत से उतरने की आवाज सुनी। मेरे कमरे का दरवाजा खुला, मौसी ही थी !

उन्होंने कमरे की बत्ती जलाई, एक नज़र मुझे देखा और मुस्कुराई।

मैंने आँखें बंद किये हुए चोरी से देखा, वो गुलाबी मैक्सी में थी, उनके बड़े बड़े चूतड़ और मस्त बड़ी बड़ी चूचियाँ साफ़ चमक रही थी।

मेरे लण्ड ने झटके लेने शुरू कर दिये, मौसी ने लाइट बुझाई और बाथरूम में घुस गई। उनके मूतने की आवाज रात के सन्नाटे में कमरे में साफ़ सुनाई दी। मन तो किया बाथरूम में मूतते हुए पकड़ कर उनको अध-मूता ही चोदना शुरू कर दूँ या उनके नमकीन मूत से तर बुर को भीतर तक जबान डाल कर चाटूँ।

लेकिन चुदने से पहले औरत खुल कर मूत ले तो अच्छा रहता है।

मौसी मूत कर मेरे बिस्तर पर आकर मेरे ही पास लेट गई, मेरा दिल जोर जोर से धडकने लगा। मैंने अपने फड़कते हुए टन्नाये लण्ड को अपनी दोनों टांगों के बीच दबा लिया। मैं चाहता था कि शुरुआत मौसी की तरफ से हो।

दो मिनट बीते थे कि मैंने अपने सीने पर मौसी जी का हाथ रेंगते हुए महसूस किया। वो मेरे सीने में आ रहे हल्के-हल्के बालों सो सहलाते हुए अपना हाथ मेरे लण्ड की तरफ ले जाने लगी, मैं समझ गया कि मेरे लण्ड का जादू इन पर चल गया है लेकिन मैं अपने खड़े लण्ड को उनको अभी पकड़ाना नहीं चाहता था इसलिए मैं उनकी तरफ पीठ करके घूम कर लेट गया मैं ने फ्रेंची और कट वाली बनियान पहन रखी थी।

मौसी ने भी मेरी तरफ करवट लेकर अपनी मैक्सी पेट तक उठा कर अपनी फूली हुई दहकती चूत को मेरे पिछवाड़े से सटा दिया वो मेरे चूतड़ों को सहलाते हुए हल्के से कराह रही थी।

उन्होंने दूसरे हाथ से मेरा चेहरा अपनी ओर घुमाया और मेरे होंठों पर चुम्बन करने लगी। मेर लिए अब बर्दाश्त करना असंभव था, मैंने उनकी और करवट बदली अब मैं और वो आमने-सामने थे।

उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी चूचियों को मलना शुरू किया और मेरे होंठ अपने होंठों में ले लिए।

मैंने बिना देर किए उनकी चूचियों को मैक्सी के ऊपर से हौले हौले मसलना शुरू कर दिया और उनके होंठों को भी चूसने लगा।

मौसी तो जैसे मस्ती में मदहोश थी, मेरे चूची दबाने से मिलने वाले सुख में वो इतना डूबीं थी कि वो भूल गईं कि मैं जाग रहा हूँ।

उनके होंठ चूसते हुए मैंने अपना दूसरा हाथ उनकी गर्म चूत पर रख दिया, ऐसा लगा जैसे हाथ को किसी हीटर पर रख दिया हो !

मौसी मीठा सा कराह रही थी, उनकी मदहोशी का फायदा उठाते हुए मैंने एक उंगली उनकी चूत में घुसेड़ दी।

मौसी को अब करेंट लगा था, चौंक कर उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया- मुन्ना... ओ.. ओ मुन्ना...? वो फ़ुसफुसाई।

मैंने उनकी चूचियों को कसकर मसल दिया और होंठों को अपने होंठों में लेकर कस कर चूसा। मौसी के मुँह से एक सीत्कार निकली।

"नहीं... बस... और कुछ मत बोलो मेरी जान !" मैंने उनके कान में कहा।

उनको मुझसे ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी पर उनको उत्तेज़क जवाब अच्छा जरूर लगा- माही... मैं हूँ मौसी...

"हाँ ! पर दिन के उजाले में... रात को अब तुम सिर्फ मेरा माल हो... मेरी जान..! कल रात तुमने मुझे अपना गुलाम जो बनाया है...!"

"तो क्या कल रात तुम?"... वो चौंक पड़ी।

"हाँ, मैं जाग रहा था और तड़पता रहा सारी रात ! पर अब नहीं... !" कह कर मैं मौसी के ऊपर आ गया और एक झटके में उनकी मैक्सी को पूरा ऊपर करते हुए उनकी गोल-गोल चूचियों को कस कर पकड़ कर जो मसलना शुरू किया तो मौसी ना नहीं कर पाई- "हाय धीरे माही... तुम नहीं जानते मैं कितना अकेली हूँ ! इसीलिए मैं कंट्रोल नहीं कर पाई और तुमको...!"

"अरे नहीं, आपने बिल्कुल सही नंबर डायल किया है, किसी को पता भी नहीं चलेगा और आपकी पूरी सेवा भी...!"

"बस अब बातें नहीं... प्यार... बहुत प्यार चाहिए मुझे ! मैं बहुत प्यासी हूँ...!" कह कर उन्होंने मेरे होंठ अपने होंठों में लेकर चूसना शुरू कर दिया।

काम का ज्वर दोनों के जिस्मों पर हावी था मेरे कसरती बाजुओं ने मौसी को कसकर जकड़ लिया, उनकी दोनों चूचियाँ मेरे कठोर सीने में पिस रही थी, उन्हें दर्द हो रहा था पर वो काम ज्वर का दर्द था।

मौसी के मुँह में मैंने अपनी जीभ डाल दी, उन्होंने मेरी जीभ को खूब चूसा। मैंने अपनी जीभ से उनके मुँह का आकार टटोल डाला। वो लगातार तड़प रही थी। मैं अब चूचियों से नीचे आकर उनकी टांगों के बीच में घुटनों के बल बैठ गया और अपना मुँह उनकी लहराती चूत पर रख दिया।

मौसी इसके लिए तैयार नहीं थी, वो सिसक उठीं और नीचे से कमर उठाते हुए अपनी महकती चूत मेरे मुँह से चिपका दी।उनकी चूत पानी से तर थी खुश्बूदार नमकीन पानी का स्रोत सामने हो और कामरस झर रहा हो तो कौन प्यासा रहना चाहेगा, मैंने अपने हाथ उनकी चूचियों पर फिट कर दिए और उन्हें दबाते हुए अपनी लपलपाती जीभ से उनकी बुर की दोनों फांकों को अलग कर दिया।

मौसी हाय कर उठी, मेरे बालों को पकड़ कर अपनी चूत उठाकर उन्होंने मेरे मुँह में दे दी। मैंने पूरी जीभ नुकीली करके उनकी बुर में जितना अन्दर डाल सकता था, डाल दी। अन्दर कामरस का भण्डार था, सब मैंने अपनी जीब से लपर-लपर चाट लिया। बरसों से रुका दरिया था, शायद मेरी नाक तक कामरस से तर हो रही थी।

मौसी चूत उठा-उठा कर मेरे मुँह पर मार रही थी, वे चूतड़ उठा-उठा कर पूरी ताकत से ऐसा कर रही थी, वो चाहती थी कि उनकी चूत से निकलने वाली एक एक बूँद मैं पी लूँ। मैं भी बचपन का प्यासा था तो मजा दोनों को ख़ूब मिल रहा था।

अचानक मैंने मौसी की चूत का ऊपरी हिस्सा चुटकी से दबा कर चूत का छेद और छोटा कर दिया फिर दोनों होंठों से चूत के नीचे का पूरा हिस्सा होंठों से भर कर ऐसा खींचा जैसे कोई बच्चा आम मुँह में लगा कर चूसता हो।

मौसी पागल हो उठी, बहुत थोड़ी सी खुली चूत के रास्ते उनका कामरस आम के रस के जैसा खिंचकर मेरे मुँह में क्या आया, मौसी गनगना उठी और उन्होंने अपनी टांगों से मेरे सर को कस लिया और बोली- .... हाय राजा ! यह सब कहाँ से सीख लिया? मैं पागल हो जाऊँगी ! अब तो बस चोद मुझे... आज फाड़कर ही हटना मर्द है तो !

मैंने बिना देर किये अपने लण्ड से उनकी चूत को निशाना बनाया जिसे मैंने चूस चूस कर लाल कर दिया था। बुर पर मोटा लाल सुपारा फनफना रहा था। मैंने बुर की दोनों फंकों के बीच ढेर सारा थूक दिया और फिर लाल सुपारे को जोरदार धक्का लगाया। लण्ड दो इंच अन्दर धंस कर रुका।

मौसी काफी दिनों से चुदी नहीं थी तो उनकी चूत नई लौंडिया के जैसी कसी थी, चूत के दोनों पाटों ने लण्ड के वार को रोकने की असफल कोशिश की- आअऽऽ ...हा ऽऽ ... आ ..ऽऽऽ करके रह गई पर अगले धक्के में लण्ड ने चूत की जड़ को छू लिया।

मौसी की दबी सी चीख निकल गई- अ आ आ...

वो धनुष बन गई। दोनों टांगें मेरे सीने के पीछे से ले जाकर वो मुझे लपेटे थी, उनकी आँखें वासना के ज्वर से बंद हो गईं थी, उनकी नाजुक कमर मेरी मजबूत बाजुओं में जकड़ी हुई थी। वो अपनी गाण्ड उठा-उठा कर लण्ड अन्दर लेने की कोशिश कर रही थी।

पूरा लण्ड बाहर तक खींच कर मैंने एक जोर का धक्का मारा और मौसी आआ..हा कर उठी।

मेरे मखमली बिस्तर पर घमासान मचा हुआ था। मौसी को मैंने कमर से ऐसे जकड़ रखा था जैसे अजगर अपना शिकार पकड़ता है। धधकते लाल लण्ड के सुपारे ने चूत का मुँह फाड़ दिया था।

मौसी छटपटा उठी थी पर सेक्स का मंत्र है कि चोदते समय चूत पर कोई रहम नहीं करना चाहिए, सो मैंने अपनी चड्डी जिससे मौसी की गीली चूत को कई बार पौंछा था को उठा कर मौसी के मुँह में ठूंस दिया और सुपारे को पूरा चूत के मुँह तक खींच खींच कर गिनते हुए चालीस शाट मारे।

मौसी गूं... गूं ...करती रही पर चुदती रही। चूतड़ों की लय बता रही थी कि उनको मस्ती आ रही थी। चूत चालीसा पूरा होते होते मौसी का पानी छूट गया, उनकी आँखें जो बड़ी बड़ी फ़ैली हुई थीं अब खुमारी से बंद हो गई थी। मैं भी पक्का था इसलिए झड़ने से पहले लण्ड को रोक कर बाहर निकाल लिया।

"आःह ....और चोद मेरे राजा... भोसड़ा बनने तक रुक मत.... उस्सीह ....आअ...अह्हा..." वो मुँह खुलते ही बोली।

"मेरी जान, सब्र तो करो....!" मैं बोला- अगर मेरी चोदी मादा सुबह लंगडा कर ना चले तो मेरा मर्द होना बेकार समझता हूँ मैं ! ....फिर आपकी तो मूतने की आवाज ही बदल दूंगा मैं सुबह तक !" उनकी टांगों को अपने दोनों हाथों से पूरा चीरता हुआ मैं बोला।

वो फिर गनगना उठी, उनकी दोनों टांगों को ऊपर ले जाकर उनके घुटनों को उनकी चूचियों से लगा दिया उनकी टपकती चूत और गाण्ड बिल्कुल मेरे सामने खुले मैदान की तरह हो गई।

आह्हा... क्या करेगा ...????? वो कराह उठी।

"तुमको पीना है....पर नीचे से.... ! मैं उनके कान में फुसफुसाया और ताजी चुदी गर्म चूत को अपने दोनों होंठों में भर लिया।

"हाय माँ...लुट गई मैं !" वो कराह उठी।

"चुप मादरचोद.... ! अभी तो तुझे सारी रात लुटना है.... ! कल से तू अपने को सोलह साल की समझेगी...ऐसा कर दूंगा तुझको... !"

मौसी और उत्तेजित हो उठी- ले साले...पी जा मेरी !

कमर उठा कर अपने हाथों से मेरा सर पकड़ कर चूत में घुसेड़ दिया।

नाक तक चूत में धंस गई मेरी। मैंने उनके रसभरे फूल को होंठों से दबा लिया, वो तड़पने लगी।

"अरे, अब जल्दी चूस चाट के चोद दे अपने पानी से मुझे सींच दे .... रा...जा..." वो नागिन सी कमर लहरा रही थी और मैं कमर को जकड़े घुटनों के बल बैठा चूत में मुँह डाले नमकीन पानी चाटता जा रहा था। मदहोश करने वाली चूत की महक मेरे नथुनों में घुस कर मेरे लण्ड तक पहुँच रही थी।करीब पांच मिनट तक चूत का रस चूसने के बाद मैंने उनकी चूत को छोड़ा और एक तकिया उनकी कमर के नीचे रख दिया। गीली चूत और लण्ड को उनकी चड्डी से पौंछ कर फिर उनके मुँह में डाल दी। 

वो ऊओं...ऊँ...कर उठी पर बेरहमी से मैंने सूखे लण्ड का तना सुपारा उनकी चूत की दोनों फांकों को एक हाथ से चौड़ा करते हुए बीच में फिट कर दिया। 

उनके पैरों के ऊपर से जोर लगाते हुए इस बार करारा धक्का मारा, सूखे लण्ड ने चूत को कस कर रगड़ दिया और यह मुझे कसी और नई चूत को चोदने जैसा लगा। 

मौसी की हालत बिन पानी के मछली जैसी हो गई। चूत के नीचे तकिया था सो दूसरे ठोकर में लण्ड ने मौसी की बच्चेदानी को स्पर्श किया। मौसी फिर धनुष हो गई ... 

इस बार चुदाई पंद्रह मिनट चली। 

वो मचलती रही... सिसकती रही... ऊओं... गों... गों.. करती रहीं पर लण्ड को पूरा अन्दर लेती रहीं। उनकी टांगों में बहता पानी गवाह था कि वो पूरा मज़ा लूट रही थी। 

बीच में एक बार झड़ी भी थी। आखिर वो समय आ गया, मेरी नसों का सारा खून एक जगह खींचता सा लगा, मैं बोल उठा- जान मेरा सब लूट लो आज ! लो मेरा गर्म पानी मेरी रानी...वाह... 

मौसी को इसी का इन्तज़ार था जैसे ! 

अपने होंठों से उन्होंने मेरे होंठ भर लिए, टागें मेरी पीठ पर कस लीं.. मेरी पीठ को सहलाते हुए वो गीलेपन के उस एहसास को महसूस करने की कोशिश करने लगी जो बरसों के बाद उन्हें नसीब हुआ था। 

मैं झड़ रहा था.. कतरा...कतरा... एक मादा के आगोश में.... एक ऐसे खुमार में जो उम्र और रिश्तों की हदों से परे था... सिर्फ उनके एक मदमस्त मादा होने का...

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रविवार, 26 मई 2013

चुदाई का दौर, chudai ka daur





यह कहानी बिल्कुल सच्ची है। मेरा काम कंप्यूटर ठीक करने का है।

31 दिसम्बर की शाम आठ बजे के बाद मेरे पास एक कॉल आया, एक लड़की बोली- भैया, आप कंप्यूटर वाले भैया बोल रहे हो ना?

मैं बोला- हाँ बोल रहा हूँ।

वो बोली- भैया, मैं सेक्टर 40 से डिम्पल बोल रही हूँ (नाम बदला हुआ है) आप मेरे यहाँ कंप्यूटर ठीक करने आते हैं, मेरा लैपटॉप ख़राब हो गया है, इसे आज ही ठीक कर दो।

मैं बोला- ठीक है, मैं कल देख लूँगा।

मैं उसका कंप्यूटर और लैपटॉप करीब चार साल से देखता हूँ।

वो रिकवेस्ट करने लगी- नहीं, आप एक बार आज ही देख लो, प्लीज़ भैया ! आज नेट पर बहुत काम करना है।

मैं बोला- ठीक है, अभी आता हूँ।

मैं गया, सवा नौ बजे मैं उसके घर पहुँचा, मैंने कॉल बेल बजाई, डिम्पल की मम्मी ने दरवाज़ा खोला, मैं अन्दर आया, मुझे बैठने बोला, मैं बैठा, उसकी मम्मी मेरे सामने बैठी, डिम्पल काफी लेकर आई और काजू वाली नमकीन !

मेरी मजाक करने की आदत है, मैं डिम्पल की मम्मी को बोला- क्या आँटी, आज भी सिर्फ काफी से कम चलेगा?

उसकी मम्मी बहुत ही सेक्सी है, उनकी उम्र करीब 45 साल है, बहुत ही सेक्सी है और हेल्दी है, देखने में सांवली हैं, वो साड़ी पहनती हैं साड़ी से उनके बूब्स आराम से दिख रहे थे क्योंकि उसका साइज़ बहुत बड़ा है।

डिम्पल ने कसी जीन्स और स्वेटर पहना था, उसके वक्ष का आकार भी बहुत बड़ा था और जांघें भी मोटी थी, वो बोली- मेरा काम कर दो, फिर जो बोलोगे वो खिला दूँगी।

मैं बोला- आज खाने की नहीं, आज पीने का दिन है।

आंटी बोली- ठीक है।

इतने में डिम्पल लैपटॉप उठा कर ले आई और मेरे बगल में आकर मेरी जांघ से जांघ सटा कर बैठ गई।

डिम्पल ने मुझसे पूछा- भैया, भाभी यही है?

मैं बोला- नहीं !

इतना कहते ही दोनों माँ बेटी की आपस में क्या इशारेबाजी हुई, पता नहीं चला।

डिम्पल बोली- तब तो भैया आज खाना खाकर ही जाना।

मैं बोला- ठीक है !

मैं तब तक नहीं समझ सका कि आज इन लोगों का क्या प्रोग्राम है।

मैं लैपटॉप चला कर देखने लगा। मैं लैपटॉप चला रहा था लेकिन कोई प्रॉब्लम दिखाई दे नहीं रही था।

मैं बोला- मैडम, इसमें तो कोई प्रॉब्लम नहीं दिख रहा है, कितना अच्छा चल रहा है, लो अपना लैपटॉप, मैं अब जाता हूँ, बहुत रात हो गई है।

उसने कहा- रुको भैया, मैं चेक करती हूँ।

इतने में दरवाजे की बेल बजी, डिम्पल की मम्मी गेट पर गई, कोई खाना देने आया था। मैंने देखा 4 बोतल बीयर की और खाने का पैकेत लेकर आंटी अंदर आई और किचन में लेकर चली गई।

डिम्पल मेरे पास आई, बोली- देखो भैया, मैंने आपके लिए कितनी व्यवस्था की है, आज 31 दिसम्बर है, यही मना कर जाना !

मेरा भी मन करने लगा रुकने का क्योंकि रात के गयारह बज गए थे।

इतने में आंटी सबके लिए गिलास, बीयर लेकर आई और साथ में काजू वाली नमकीन।

मैं लेने से मना करने लगा, डिम्पल की मम्मी कहने लगी- ले लो बेटा, आज तो सब लेते हैं।

मुझे भी कुछ शरारत सूझी, मैं बोल उठा- डिम्पल मेरे साथ लेगी तो मैं लूँगा।

इतना कहते ही डिम्पल मेरे पास आकर बैठ गई और एक बीयर का गिलास उठा कर मेरे साथ चीयर्स करके पीने लगी। एक ग्लास ख़तम होने के बाद दूसरा ग्लास भर कर मुझे कह कर चली गई- मैं कपड़े बदल कर आती हूँ।

तब तक उसकी मम्मी और हम धीरे धीरे पीने लगे वो जल्दी से कपड़े पहन कर आ गई। कपड़े क्या थे, सिर्फ काले रंग की छोटी नाइटी पहन कर आई। उसकी मम्मी चुपचाप उठ कर वहाँ से चली गई। डिम्पल मेरे से सट कर बीयर पीने लगी। मेरा भी दिमाग ख़राब होने लगा, मैं उससे किस मांगी तो उसने मुझे चुम्मी दे दी।

इतने में उसकी मम्मी खाना ले कर आई तो हमें देख कर बोली- बेटा, खाना खा लो फ़िर करना, मना लेना 31 दिसम्बर !

हमने खाना खाया तो मैं उन दोनों के बीच में बैठा था। खाना कह्त्म करने के बाद डिम्पल ने लैपटॉप चैक करने के बहाने उसमें ब्लू फ़िल्म लगा दी और अपनी मम्मी को कहने लगी- देखो मम्मी, लैपटॉप ठीक चल रहा है।

आंटी बोली- तुम देखो, मैं बर्तन रख कर आती हूं।

कुछ देर देखने के बाद डिम्पल मेरे से चिपक गई उसका चेहरा देखा तो पूरा लाल, इस ठण्ड में उसे पसीना आ रहा था, मैं उसके बूब्स दबाने लगा, वो मेरी पैंट के ऊपर से ही मेरे लण्ड को सहलाने लगी।

फिर क्या था, मैं और डिम्पल दोनों पूरे जोश में आ गये, सारे कपड़े हटा दिये और मैं उसकी चूत को चाटने लगा। इतना चाटा कि वो परेशान हो गई, वो अपने चूतड़ उठा उठा कर कहने लगी- प्लीज़ डाल दो, कर दो !

मैं भी ज्यादा टाइम नहीं रुक सका और उसकी जम कर चुदाई कर दी और उसके बूब्स पर सारा पानी डाल दिया, फिर दोनों शांत हो गए, फ़िर दोनों हंसते हुए उठ कर बाथरूम में जाकर फ्रेश हुए, फिर डिम्पल बोली- मम्मी को भी कर दो !

फ़िर हम दोनों उसकी मम्मी के बेडरूम में गए और वहाँ भी उसी तरह चूत को चाटने के बाद पूरी चुदाई चली। फिर एक बार डिम्पल को उसकी मम्मी के सामने चोदा, फिर हम लोग सो गए, कब सुबह हुई, हमें पता भी नहीं चला।

सुबह १० बजे मेरी नींद खुली तो दोनों माँ बेटी मेरे पास नंगी सोई हुई थी।

मैंने सोती हुई डिम्पल के होंठों को चूमा और फ़िर उसके होंठ खोल कर उनके बीच अपना लौड़ा घुसा दिया और उसकी मम्मी के होंठों को चूमने लगा।

डिम्पल जाग गई और वह मेरे लण्ड को चूसने लगी।

फ़िर चुदाई का एक छोटा दौर चला और हम तीनों खुश थे।

आंटी ने मुझे फिर आने के लिए बोला।

मैंने भी बोल दिया- जब जरुरत हो बुला लेना।

मेरा कहानी कैसी लगी, मुझे मेरे ईमेल पर बताएँ।

धन्यवाद

amityoung30@yahoo.com

सोमवार, 20 मई 2013

बुआ की तंग चूत-2

हाय.... क्या स्वाद था।

बुआ मस्ती के मारे सीत्कारने लगी। उसकी आहें कमरे में गूंजने लगी- आह्हह्ह आह्ह्ह राज मैं मर जाउंगी राज आह्हह्ह.....

मैं चुपचाप बुआ की गोरी गोरी चूचियों का मजा ले रहा था। बुआ ने आहें भरते भरते हाथ नीचे ले जाकर लंड को पकड़ कर मसल दिया। मैं इस हमले के लिए तैयार नहीं था सो कसमसा उठा। लंड अकड़ा हुआ था सो थोड़ा दर्द भी हुआ पर मजा भी बहुत आया- बुआ, इसे बाहर निकाल लो ना !

बुआ कुछ नहीं बोली, बस पजामे का नाड़ा पकड़ कर खींच दिया। फिर मुझे अपने ऊपर से थोड़ा उठाया और मेरा पजामा अंडरवियर सहित नीचे खींच दिया। मेरे लंड महाराज पूरे शबाब पर थे। एकदम सर उठाये अकड़ कर खड़े थे।

बुआ ने मेरा लंड हाथ में पकड़ लिया और बोली- राज..... हाय.......कितना बड़ा है तुम्हारा !

मेरा लंड अपनी तारीफ़ सुन कर और ज्यादा अकड़ गया और किसी नटखट बच्चे की तरह ठुनकने लगा। बुआ अपने कोमल कोमल हाथों से लंड को सहलाने लगी।

मैंने पूछा- चूसोगी?

बुआ ने मना कर दिया |फिर ना जाने क्या मन किया कि झट से लंड को पकड़ कर मुँह में ले लिया और लॉलीपोप की तरह चूसने लगी। मेरे लिए तो ये एक बिल्कुल नया अनुभव था। बुआ बहुत मस्त चूस रही थी। लंड तो पहले ही फटने को हो रहा था। मैं ज्यादा रोक नहीं कर पाया और बुआ के मुँह में ही झड़ गया। बुआ ने शायद पहले कभी लंड का पानी नहीं चखा था तभी तो बुआ को थोड़ी उबकाई सी आईमैं एक बार ठंडा हो चुका था पर मेरे सामने जो आग पड़ी थी उसे देखते ही बदन का खून फिर से गर्म होने लगा।

अब मैंने बुआ की साड़ी उतारनी शुरू कर दी और अगले ही पल बुआ सिर्फ पेटीकोट में मेरे सामने पड़ी थी। मैंने बुआ के पाँव चूमने शुरू किये और बुआ के केले के तने जैसी टांगो पर हाथ फेरते हुए पेटीकोट को उठाते हुए ऊपर की तरफ बढ़ने लगा। बुआ की गोरी गोरी टांगों पर हाथ फेरते हुए मैं उन्हें चूमता भी जा रहा था। मेरे होंठो के छुअन से बुआ मस्ती में भर गई थे और बेचैन होती जा रही थी। कुछ ही देर बाद बुआ की गोरी-गोरी जांघे दिखने लगी। मैं चूमता जा रहा था और बुआ सिसकारियाँ बढ़ती जा रही थी। अब मुझे पेंटी में कसी बुआ की चूत नजर आने लगी थी। बुआ मस्त हो गई थी और पूरी पेंटी गीली हो चुकी थी बुआ की चूत के पानी से।
मैंने अपना हाथ जैसे ही बुआ की चूत पर रखा, बुआ सीत्कार उठी। शायद बुआ उत्तेजना के कारण झड़ गई थी क्योंकि इस सीत्कार के साथ ही पेंटी और भी गीली हो गई थी। मैंने बुआ की गीली पेंटी को उतार दिया। बुआ की लाल-लाल चूत अब बिलकुल नंगी मेरी आँखों के सामने थी। मैंने बुआ की गीली पेंटी को सूंघा। क्या मादक खुशबू थी यार। लंड अकड़ कर लट्ठ जैसा हो गया था। इस खुशबू ने मुझे दीवाना बना दिया था। मैंने पेंटी एक तरफ़ कर अपने होंठ बुआ की चूत की पुतियों पर रख दिए। बुआ की चूत बहुत पानी छोड़ रही थी। मैं जीभ से उस अमृत को चाटने लगा। मैंने भी पहले कभी चूत का स्वाद नहीं चखा था। पर मुझे बुआ की चूत का कसैला और नमकीन स्वाद बहुत अच्छा लगा और मैं मस्त हो कर चाटने लगा था।बुआ बुरी तरह से सीत्कार रही थी। अब मैंने बुआ का पेटीकोट भी उतार कर एक तरफ़ रख दिया। बुआ अब बिलकुल नंगी थी। मेरे शरीर पर भी सिर्फ बनियान थी जो बुआ ने उतार फेंकी। अब हम दोनों जन्मजात नंगे थे। लंड तो पहले से ही लोहे की छड़ की तरह से हो चुका था। बुआ भी पूरी मदहोश थी।

"अब नहीं रहा जाता राज.... जल्दी से कुछ कर ! नहीं तो मैं मर जाऊँगी !"

"क्या करूँ बुआ ? खुल कर बोलो ना !"

"क्या बोलू बेशर्म.. क्यों तड़पा रहा है ? चोद मुझे... अब बर्दाश्त नहीं होता..मेरा पहली बार था तो मैं भी जल्दी से लंड चूत में डालने के लिए मरा जा रहा था। मैंने लंड बुआ की चूत के मुँह पर रखा तो ऐसा लगा जैसे किसी भट्टी के मुँह पर रख दिया हो। बुआ की चूत बहुत गर्म थी। चूत बिल्कुल उबल रही थी। मैंने लंड को ठीक से सेट किया और एक जोरदार धक्का लगा दिया। चूत बहुत तंग थी सुपारा बुआ की चूत में उतर गया था। बुआ एक दम से कसमसा उठी दर्द के मारे।

मुझे हैरानी हुई कि बुआ की शादी तो दो साल पहले हो चुकी थी यानी बुआ पिछले दो साल से चुदवा रही थी पर फिर भी बुआ को मेरा लंड लेने में तकलीफ हो रही थी। चूत इतनी कसी थी कि लगता ही नहीं था कि इस चूत ने लंड का स्वाद चखा होगा। इसी हैरानी में मैंने एक और जोरदार धक्का लगा दिया। आधा लंड बुआ की पनियाई हुई चूत में घुस गया। बुआ दर्द के मारे छटपटाने लगी। लंड तो मेरा भी कम नहीं था पर बुआ तो पिछले दो साल से चुदवा रही थी। खैर अगले दो धक्कों में पूरा लंड बुआ की चूत में घुस गया था। बुआ की झांटें और मेरी झांटें अब संगम कर रही थी। लंड जड़ तक घुस चुका था। बुआ की आँखों में आंसू आ गए थे।

मैंने पूछा- बुआ, दर्द हो रहा है क्या ?

"नहीं रे.. तू अपना काम करता रह, मेरे आंसू मत देख..."मैंने धक्के लगाने शुरू कर दिए। बुआ की चूत बहुत तंग थी। लंड पूरा रगड़ रगड़ कर जा रहा था चूत में। बुआ धीरे धीरे मस्त होती जा रही थी। दर्द की शिकन जो कुछ देर पहले बुआ के चेहरे पर थी वो अब खत्म हो चुकी थी। बुआ ने अब अपने चूतड़ उठा उठा कर मेरे धक्कों का जवाब देना शुरू कर दिया था। मैं भी गाँव का जवान पट्ठा था। पूरे जोश के साथ बुआ की चूत का बाजा बजा रहा था। अब तो बुआ भी मस्त हो चुदा रही थी। हम दोनों एक दूसरे से कुछ नहीं बोल रहे थे बस दोनों के मुँह से सीत्कारें निकल रही थी।

करीब दस मिनट के बाद बुआ का शरीर अकड़ने लगा और बुआ लगभग चिल्ला उठी= आह्हह्ह.........राज....जोर से चोद मेरे राजा....... हाय बहुत प्यासी है रे तेरी बुआ की चूत....आह्ह...मार धक्के मेरे राज मैं तो गय्ईईईई अआहह्ह ग्ईईईई मैं तो आह्ह्ह... जोर से कर और जोर से आह्ह आह जोररर से आहह...

और बुआ झड़ गई और ढेर सारा पानी बुआ की चूत से निकल कर मेरे लंड के बराबर में से बाहर निकलने लगा। मेरा अभी नहीं हुआ था तो मैं अब भी जोरदार धक्को के साथ बुआ की चूत को पेल रहा था। दो मिनट के बाद ही बुआ फिर से गांड उछाल उछाल कर लंड लेने लगी। कमरे में अब फचा फच…. फचा फच… की आवाज गूंज रही थी। लंड मस्त गति से बुआ की चूत के अंदर आ जा रहा था।आधे घंटे की मस्त चुदाई के बाद मेरा लंड भी फटने को तैयार था और बुआ की चूत भी दूसरी बार फव्वारा छोड़ने को तैयार थी। मेरे मुँह से भी अब मस्ती भरी आवाजें निकल रही थी बिल्कुल शेर के गुर्राने जैसी। बुआ भी और जोर से और जोर से चिल्लाने लगी थी। बुआ ने मुझे कस कर जकड़ लिया बुआ के नाख़ून मेरी कमर में गड़ गए थे। दोनों का शरीर बुरी तरह से अकड़ने लगा था। फिर मेरा लंड फ़ूट पड़ा और वीर्य की धार बुआ के चूत में छूट गई। मेरे गर्म वीर्य का गर्मी मिलते ही बुआ की चूत भी पिंघल गई और उसने पानी का दरिया चला दिया। बुआ झमाझम झड़ रही थी। कमरे में तूफ़ान सा आ गया था। हम दोनों ही पसीने पसीने हो चुके थे।बुआ एक बार फिर फफक पड़ी। मैंने अपने होंठों से बुआ की गालों पर आये आँसूओं को पीते हुए अपने होंठ बुआ के होंठों पर रख दिए। फिर तो एक प्यासी औरत और एक जवान लड़का दीन-दुनिया को भूल कर एक दूसरे में समाते चले गए। कब कपड़ों ने हम दोनों के शरीर को छोड़ दिया पता ही नहीं चला। कुछ देर के बाद ही हम दोनों बिलकुल नंगे एक दूसरे की बाहों में समाये हुए थे। फिर चूमा-चाटी का ऐसा दौर चला कि थोड़ी देर बाद ही मेरा लंड बुआ के मुँह में था और मेरा मुँह बुआ की चूत पर। लंड पूरा तन चुका था। मैंने बुआ को सीधा लेटाया और अपना मोटा लंड बुआ के गीली चूत पर रख दिया।

बुआ, जिसकी प्यास अब बुझने वाली थी, अपने चूतड़ एक दम से ऊपर उछाल कर मेरे लंड का स्वागत किया। जवाब में मैंने भी एक जोरदार धक्का लगा दिया। बुआ थोड़ी कसमसाई पर बोली कुछ नहीं क्यूंकि प्यासी तो वो भी थी। चूत बहुत तंग थी लंड पूरा फंस-फंस कर जा रहा था। मैंने धीरे धीरे पूरा लंड बुआ की चूत में घुसा दिया। फिर शुरू हुआ हल्के-हल्के धक्कों का दौर और फिर धीरे धीरे गति बढ़ती चली गई। बुआ चूत में होने वाले घर्षण से मस्त उठी और गांड उछाल-उछाल कर लंड अंदर लेने लगी। मस्त चुदाई हो रही थी। आधे घंटे के जबरदस्त चुदाई के दौरान बुआ तीन बार झड़ गई थी। फिर मैंने भी अपना सारा माल बुआ की मस्त चूत में डाल दिया।

शनिवार, 18 मई 2013

बुआ की तंग चूत-1


मैं शहर में कमरा तलाश कर रहा था। तभी बुआ का एक दिन फोन आया कि फूफा जी का तबादला उसी शहर में हो गया है जहां मैं पढ़ता हूँ। बुआ ने बताया कि उन्हें सरकारी मकान मिला है रहने के लिए जो बहुत बड़ा है। बुआ के कोई बच्चा तो था नहीं अभी तक सिर्फ बुआ और फूफा ही थे। बुआ बोली कि मुझे कमरा ढूंढने की कोई जरुरत नहीं है। मैं उनके पास रह सकता हूँ। पिता जी भी इसके लिए राजी हो गए क्योंकि इस से मेरे खाने पीने की समस्या का भी हल मिल गया था और बुआ-फूफा की निगरानी में मेरे बिगड़ने का भी डर नहीं था।

पिता जी ने फूफा से बात की तो उन्होंने भी हाँ कर दी। बस दो दिन के बाद फूफा सामान लेकर शहर पहुँच गए। मकान पर फूफा के ऑफिस के लोग आये थे फूफा से मिलने और सामान उतरवाने। करीब आधे घंटे में सब लोग सामान उतरवा कर और चाय पी कर चले गए। अब सामान जमाने का काम शुरू करना था। यह काम तो बुआ को ही करना था। मैं भी बुआ की मदद करने लगा। मैंने और बुआ ने मिल कर बड़ा-बड़ा सामान करीने से लगा दिया। अब कुछ छोटा मोटा सामान बचा था जो हर रोज़ काम आने वाला भी नहीं था। बुआ बोली कि इसे ऊपर टांड पर रख देते हैं।

तभी फूफा ने आवाज दी। जाकर देखा तो फूफा जी बोतल खोल कर बैठे थे और शायद एक दो पैग लगा भी चुके थे। वो कुछ खाने को मांग रहे थे। फूफा ने मुझे भी लेने को कहा पर मैंने मना कर दिया क्योंकि मैंने पहले कभी नहीं पी थी।

बुआ ने फूफा को काजू और नमकीन निकाल कर दी और हम फिर से काम पर लग गए। काम के दौरान हम दोनों ने एक दूसरे को कई बार छुआ पर ना तो मेरे मन में और ना ही बुआ के मन में कोई दूसरा ख़याल था। यानि सब कुछ सामान्य था। बुआ टांड पर चढ़ी हुई थी और मैं नीचे से सामान पकड़ा रहा था।
अचानक बुआ एकदम से चिल्लाई।

मैंने पूछा- क्या हुआ?

तो बुआ बोली कॉकरोच है। बुआ कॉकरोच से बहुत डरती थी।

मैंने ऊपर चढ़ कर देखा तो कॉकरोच ही था। मैंने कॉकरोच को मार कर नीचे फेंक दिया। बुआ अब भी बहुत डरी हुई थी। डर के मारे बुआ की आवाज भी नहीं निकल रही थी। जैसे ही मैंने कॉकरोच को मार कर नीचे फेंका बुआ एकदम मुझ से चिपक गई। बुआ डर के मारे कांप रही थी।

मैंने बुआ के कंधे पर हाथ रखा और बोला- बुआ अब कॉकरोच नहीं है, मैंने उसे मार कर फ़ेंक दिया है।

पर बुआ अब भी मुझ से चिपकी हुई कांप रही थी। मेरा हाथ बुआ की पीठ पर चला गया था। पर अब तक मेरे दिल में कोई भी ऐसी वैसी बात नहीं थी। अचानक मेरी नजर बुआ की चूचियों पर गई जो दिल की धड़कन के साथ ऊपर नीचे हो रही थी और अब मुझे अपने सीने में गड़ी हुई महसूस हो रही थी। मेरा लंड एक दम से पजामे में हरकत करने लगा था। पर मैं अपने आप पर कण्ट्रोल करने के पूरी कोशिश कर रहा था।

बुआ अब भी मुझसे चिपकी हुई थी। मैंने बुआ के चेहरे को आपने हाथ से ऊपर उठाया। बुआ की आँखें बंद थी। बुआ कितनी खूबसूरत थी इस बात का एहसास मुझे इसी पल हुआ था। मैंने कभी बुआ को इस नजर से देखा ही नहीं था। एक दम गोरा चिट्टा रंग, गुलाबी होंठ। इस पल तो मुझे बस यही नजर आ रहे थे। या फिर आपने सीने में गड़ती बुआ की मस्त बड़ी बड़ी चूचियाँ। बुआ की चूचियाँ बड़ी बड़ी थी। पर मुझे उसके नंबर का कोई अंदाजा नहीं था।

अब मुझे बुआ पर बहुत प्यार आ रहा था। बुआ के बदन के खुशबू और गर्मी ने मुझे दीवाना बना दिया था। अब मेरा आपने ऊपर कण्ट्रोल खत्म होता जा रहा था। बुआ का चेहरा मेरे करीब आता जा रहा था। ना जाने कब मेरे होंठ बुआ के होंठों से टकरा गए और मैं बुआ के रसीले होंठ अपने होंठो में दबा कर चूसने लगा। बुआ भी मेरा साथ देने लगी। एक दो मिनट तक ऐसे ही रहा। फिर बुआ जैसे अचानक नींद से जागी और उसने मुझे अपने से अलग कर दिया। बुआ नीचे मुँह किये हुए थी। मैं भी अपनी करनी पर शर्मिन्दा महसूस कर रहा था। मैं नीचे उतर गया। बुआ जब नीचे उतरने लगी तो बीच में ही लटक गई। बुआ ने मुझे मदद करने को कहा।
मैंने बुआ की टाँगें पकड़ ली और बुआ धीरे धीरे नीचे आने लगी। जैसे ही मेरे हाथ बुआ के गांड के पास पहुंचे मैंने बुआ के चूतड़ हल्के से दबा दिए। बुआ के मुँह से सिसकारी जैसी आवाज निकली मैं तो जैसे कहीं खो सा गया था।

बुआ बोली- अब ऐसे ही पकड़ कर खड़ा रहेगा या मुझे नीचे भी उतारेगा ?

मैं भी सपने से जगा और बुआ को नीचे उतारने लगा। जब बुआ मेरे बराबर आई तो बुआ की मस्त चूचियाँ बिलकुल मेरे मुँह के सामने थी। बुआ की उठती गिरती साँसों के साथ ऊपर नीचे होती चूचियों को देख कर मेरा तो दिमाग बिलकुल सुन्न हो गया।

अचानक बुआ ने मेरा सर पकड़ा और अपनी चूचियों पर दबा दिया। बुआ के बदन कि खुशबू ने मुझे हिला कर रख दिया था। मेरे पजामे में तूफ़ान सी हलचल होने लगी थी। हम इन लम्हों का आनन्द ले ही रहे थे कि फूफा की आवाज ने हम दोनों को सपनो की दुनिया से बाहर निकाला।

फूफा को कुछ खाने के लिए चाहिए था। बुआ मुझ से अलग हुई और रसोई में चली गई। मैं पहले तो वहीं खड़ा रहा फिर मैं भी बुआ के पीछे पीछे रसोई में चला गया। अब बुआ से अलग होने का मेरा दिल नहीं था। बुआ ने खाना लगाया और फूफा को देने चली गई। खाना फूफा के ऑफिस के लोग देकर गए थे। फूफा के कमरे में जाकर देखा तो फूफा पूरी बोतल गटक चुके थे। बड़ी मुश्किल से एक रोटी खाई और वहीं बेड पर पसर गए। बुआ ने उनके जूते वगैरा उतारे और सीधा करके लिटा दिया। पांच मिनट के बाद ही फूफा सो गए।

बुआ ने कहा कि मैं भी रसोई में आकर खाना खा लूँ। मैं भी बुआ के पीछे पीछे रसोई में चला गया। सच बोलूं तो मेरा दिल बुरी तरह से धड़क रहा था। दिल कर रहा था के बुआ एक बार फिर से मुझे आपने छाती से लगा ले। मेरा मुँह अपनी चूचियों में छुपा ले। पर थोड़ा सा डर था दिल में। आखिर वो मेरी बुआ थी।

बुआ ने खाना लगा दिया था और जैसे ही मुझे देने के लिए पीछे मुड़ी तो मुझ से टकरा गई क्योंकि मैं बुआ के बिल्कुल नजदीक खड़ा था। खाना गिरते गिरते बचा। मैंने बुआ को संभाला और इस संभालने के चक्कर में मेरा एक हाथ बुआ के नंगे पेट पर चला गया। मेरे हाथ का स्पर्श मिलते ही बुआ के मुँह से आह से निकल गई। बुआ के पेट का नरम और चिकना एहसास मिलते ही मेरा दिल भी धक-धक करने लगा। मैंने खाने की प्लेट बुआ के हाथ से लेकर एक तरफ़ रख दी और बुआ को थोड़ा अपनी ओर खींचा।
बुआ अब बिलकुल मेरे नजदीक थी। बुआ की मस्त कठोर चूचियाँ मेरे सीने में गढ़ रही थी और गर्म साँसे मेरी साँसों से मिल कर बहुत ही मादक माहोल बना रही थी। हम दोनों एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे पर बोल कुछ भी नहीं रहे थे। बुआ की आँखों में एक प्यास सी नजर आ रही थी। मैंने बिना कुछ बोले अपने होंठ बुआ के गर्म होंठों पर रख दिए। बुआ एक दम से सिहर उठी। अब मैं बुआ के रसीले होंठों से अपनी प्यास ठंडी कर रहा था और इसमें बुआ मेरा पूरा साथ दे रही थी। फूफा सो चुके थे सो अब डर भी नहीं था। मुझे मालूम था के फूफा पुरी बोतल गटक कर सोये थे तो सुबह से पहले तो उठने वाले थे नहीं। मैंने बुआ को गोदी में उठाया और बेडरूम में ले गया।

जब मैंने बुआ को गोद में उठाया तो बुआ मुझ से बुरी तरह से चिपक गई। मैंने बुआ को बेड पर लिटा कर देखा तो बुआ आँखें बंद करके पड़ी थी और उसकी सांस धौंकनी की तरह से चल रही थी यानि वो लंबी लंबी और तेज तेज साँसें ले रही थी। शरीर भी कुछ अंगड़ाईयाँ ले रहा था। बुआ के उठते गिरते उभारों को देख कर मेरा लंड अब पजामा फाड़ कर बाहर आने को उतावला हो रहा था। मैंने बुआ की साड़ी का पल्लू एक तरफ किया तो बुआ की मस्त पहाड़ियों को देखता ही रह गया। क्या मस्त चूची थी बुआ की। मुझे खुशी भी हो रही थी कि मेरी बुआ इतनी सेक्सी और सुंदर है। अभी कुछ देर पहले ही तो बुआ ने मेरा मुँह दबाया था इन मस्त चूचियों में।

मेरा एक हाथ बुआ की दाईं चूची पर चला गया। हाय.....क्या मस्त कठोर चूची थी। मेरा तो बुरा हाल हो रहा था क्योंकि मेरा तो यह पहली बार ही था ना। बुआ ने मेरा हाथ अपनी चूची के ऊपर पकड़ कर दबा दिया और खुद ही सीत्कार उठी। एक मस्त आह सी निकली बुआ के मुँह से।

मैं अब धीरे धीरे बुआ की चूचियाँ सहलाने लगा था। बुआ के मुँह से सिसकरियाँ निकल रही थी। मैंने बुआ के ब्लाउज के हुक खोलने शुरू किये तो बुआ ने मेरा हाथ पकड़ लिया- नहीं राज, यह ठीक नहीं है। मैं तेरी बुआ लगती हूँ।
पर मुझ पर तो अब वासना का नशा छाने लगा था। मैंने बुआ की बात को अनसुना कर दिया और अगले ही पल बुआ की ब्रा में कसी चूचियाँ मेरी आँखों के सामने थी। मैंने ब्रा के ऊपर से ही चूचियों को चूमना शुरू कर दिया। बुआ भी अब वासना की आग में जलने लगी थी। बुआ की सिसकारियों से इस बात का पता चल रहा था। बुआ बार-बार ना-ना कर रही थी पर सिसकारियों से साफ़ था कि बुआ के मुँह पर ना और मन में हाँ थी।

मैंने बुआ की ब्रा का हुक खोल दिया। बुआ की दोनों मस्त गोरी गोरी चूचियाँ एक दम से उछल कर बाहर आई। बुआ की चूचियाँ एक दम से तनी-तनी थी। दोनों चुचूक किसी पहाड़ी की चोटी की तरह से लग रहे थे। मैंने आव देखा ना ताव, झट से बुआ की एक चूची को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा।


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