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मंगलवार, 14 मई 2013

मौसी के घर-1, sex in mausi ke ghar

यह बात तब की है जब मैं अपनी शादी के करीब छः महीने बाद अपनी छोटी मौसी के घर कुछ दिन रहने के लिए गई थी। मेरे पति को किसी ज़रूरी बिज़नस के सिलसिले में सिंगापुर जाना पड़ गया था और वो करीब एक-डेढ़ महीने बाद आने वाले थे। पीछे से मैं कुछ दिनों के लिए अपने मायके चली गई और वहां से एक हफ्ते बाद ही मेरी छोटी मौसी मुझे लेने आ गई कि चल संजू कुछ दिन हमारे साथ भी रह जा ! मैं भी फ्री थी सोचा चलो मौसी के घर ही चलते हैं।

जब हम मौसी के घर पहुंचे तो मेरा स्वागत मौसी के बेटे १८ वर्षीय मयंक और उसकी छोटी बहन १५ साल की सुंदर सी अंकिता ने किया। मैं भी सबको बड़ी गर्मजोशी से मिली, शाम को मौसा जी आये उन्होंने भी बड़ा प्यार दिया।३ दिन बाद मौसी कपड़े धो रही थी तो उन्होंने कहा," अरे संजू ज़रा यह कपड़े छत पर सुखा आ !"

मैं भी खाली बैठी थी, सोचा कि चलो थोड़ा काम ही कर लूं ! मैंने कपड़ों वाली बाल्टी उठाई और सुखाने के लिये छत पर चली गई। छत पर मयंक बैठा पढ़ रहा था। मैं बाल्टी से कपड़े निकाल निकाल कर लोहे की तार पर डाल रही थी। अचानक मुझे अहसास हुआ कि जैसे कोई मुझे बहुत घूर घूर के देख रहा हो।

मैंने देखा तो ये मयंक ही था। जब भी मैं कपड़े उठाने के लिए झुकती तो मयंक मेरे भरे भरे गुन्दाज स्तनों को बड़े धयान से देखता।कपड़े सुखाते सुखाते मैंने मयंक से इधर उधर की बातें शुरू की तो वो भी पढ़ाई छोड़ के मुझ से दिलचस्पी लेकर बातें करने लगा। जब कपड़े सूखने के लिए डाल दिए तो मैं जानबूझ कर मयंक के पास जा कर बैठ गई। मैंने दुपट्टा नहीं ओढ़ रखा था इसलिए मेरी वक्ष-रेखा स्पष्ट रूप से दिख रही थी और मयंक की आँखें मेरे स्तनों पे गड़ी हुई थी। मैं भी शर्म न करते हुए उसके सामने ही चटाई पर उलटी लेट गई और उससे बातें करने लगी।

अब मेरे स्तनों को वो बड़े आराम से देख सकता था और मैं भी देख रही थी कि उसकी आँखें मेरे बूब्स से नहीं हट रही थी। फिर मैंने एक और शरारत की और बोली," मयंक, तुम्हारा दिल १ मिनट में कितनी बार धड़कता है?"

वो बोला- ७२ बार !

"पर मुझे लगता है जैसे मेरा दिल ज्यादा धड़कता है, कहीं मुझे हार्ट-अटैक तो नहीं आ जायेगा !" मैं बोली।"अरे दीदी पागल हो गई हो क्या? इतनी छोटी सी उम्र में भी कहीं हार्ट-अटैक हो सकता है !" उसने जवाब दिया।

"अच्छा चलो, मुझे अपनी दिल की धड़कन सुनाओ !" यह कह कर मैं अपना कान उसके सीने पर लगा कर उसके दिल की धड़कन सुनने का नाटक करने लगी। एक मिनट बाद मैंने सर हटा कर कहा," बिलकुल ठीक ! पूरे ७२ बार ! अब मेरी सुनो !"

जबकि मुझे उसके दिल की धड़कन बढ़ी हुई लगी थी। मैंने जानबूझ कर उसका सर पकड़ कर अपने सीने पर इस तरह से रखा कि उसके होंठ मेरे स्तन-रेखा को छूते रहें।सने कान मेरे सीने से लगा तो लिया पर मैं जानती थी कि उसकी हालत खराब हो रही थी।

उसके बाद सारा दिन कोई ख़ास बात नहीं हुई, पर मयंक बात-बे-बात मेरे आस पास ही मंडराता रहा।

रात को खाना खाने के बाद सोने से पहले दूध लेकर जब मौसी ऊपर मयंक के कमरे में जाने लगी तो मैंने उन्हें कहा,"मौसी ! लाइए, दूध मैं ले जाती हूँ और हाँ मेरा गिलास भी इसके साथ ही रख दीजिये, दूध पीकर मैं भी अंकिता के साथ ही सो जाउंगी।" "ओ के बेटा ! ये लो, और गुड नाईट !"

"गुड नाईट !" कह कर तीन गिलास दूध लेकर मैं ऊपर चौबारे में मयंक और अंकिता के कमरे में चली गई। ऊपर कमरे में बैठे दोनों अपने अपने बिस्तर पर बैठे पढ़ रहे थे। मैंने जाकर ऊंची आवाज़ में कहा,"दूध पियो भाई दूध पियो !"दोनों ने मुस्कुरा कर मेरी और देखा फिर हमने इकट्ठे बैठ कर दूध पिया और थोड़ी देर इधर उधर की बातें करके लाईट बंद कर दी और सोने लगे। पर मुझे तो नींद ही नहीं आ रही थी। अभी शादी को सिर्फ छः महीने ही हुए थे और पति महीने-डेढ़-महीने के लिए बाहर चले गए थे, अभी तो मेरा दिल भी नहीं भरा था।

मैं लेटी लेटी सोच रही थी और मेरे साथ लेटी अंकिता तो गहरी नींद में थी। फिर मैंने देखा कि मयंक उठ कर बाथरूम गया है और खिड़की से अन्दर आ रही चाँद की रौशनी उसके सारे बिस्तर पर पड़ रही थी। मैं चुपके से उठी और जाकर उसके बिस्तर पर लेट गई। जब मयंक आया तो मुझे वहां देखकर बोला," अरे दीदी ! आप यहाँ? अंकिता के पास नींद नहीं आई क्या?"

मैं बोली,"नहीं, पर मुझे चांदनी में सोना अच्छा लगता है।"

तो वो बोला,"ठीक है ! आप यहाँ सो जाओ, मैं वहां सो जाता हूँ।"

मैंने तभी पलट कर कहा,"अरे नहीं ! तुम भी यहीं आ जाओ मेरे पास !"

तो मयंक भी उसी बेड पर मेरे साथ लेट गया पर कुछ फासला बना कर !

मैंने जो नाईटी पहन रखी थी उसका गला बहुत गहरा था और नाईटी के नीचे मैंने सिर्फ ब्रा और पेंटी पहन रखी थी। गहरे गले के कारण मेरे स्तनों का ज्यादातर हिस्सा दिख रहा था, यहाँ तक कि मेरी आधी ब्रा भी गले से बाहर झांक रही थी और मैं जानती थी कि चांदनी में नहाया हुआ मेरा बदन मयंक को अपनी तरफ खींच रहा था।

थोड़ी देर हम दोनों फुसफुसा कर इधर उधर की बातें करते रहे ताकि कहीं अंकिता की नींद न खुल जाये। फिर मैंने जान बूझ कर बहाना बनाया,"बड़ी गर्मी सी लग रही है ! क्या तुम्हें नहीं लग रही?""नहीं दीदी, मुझे तो मौसम ठीक लग रहा है।" मयंक बोला।

पर मैं तो बहाना बना रही थी इसलिए मैं उठ कर बाथरूम में गई और एक मिनट बाद अपनी ब्रा उतार कर और अपनी सारी नाईटी आगे की तरफ खींच कर वापिस आकर बिस्तर पर लेट गई।

"अब ठीक है, असल में मेरी ब्रा बहुत कसी थी, शायद इसीलिए मुझे घुटन महसूस हो रही थी !" कह कर मैं फिर मयंक की तरफ मुंह कर के लेट गई। अब ब्रा न होने की वजह से मयंक मेरे बूब्स के कट्स ज्यादा अच्छी तरह देख सकता था क्योंकि सिर्फ मेरे चूचुक को छोड़ के तकरीबन मेरा दायाँ स्तन उसे सारा का सारा दिख रहा था।

मैंने फिर उसकी गर्लफ्रेंड की और आलतू फालतू की सेक्सी बातें करनी शुरू की ताकि उसमे थोड़ी गर्मी आये और उसका हाथ पकड़ कर अपने बूब्स के साथ लगा कर रख लिया। पहले तो वो थोड़ा डर रहा था पर मैं महसूस कर सकती थी कि उसकी मर्दानगी जागने लगी थी। मैंने अपना हाथ पीछे खींच लिया पर उसने अपना हाथ अब भी मेरे वक्ष से सटा रखा था वो हल्के हल्के हाथ हिलाने के बहाने मेरे बूब्स को दबा कर देख रहा था।

मैंने सोचा कि अब ज्यादा औपचारिकता की ज़रुरत नहीं, सीधा मुद्दे पे आ जाना चाहिए, तो मैंने सीधे-सीधे ही मयंक से पूछ डाला- मयंक क्या तुम्हें इन्हें दबाना अच्छा लग रहा है?

उसने नज़र उठा कर मेरी तरफ देखा और बोला," हाँ दीदी, बहुत अच्छा लग रहा है !"मैंने अपनी नाईटी का गला एक तरफ से हटा कर अपना दायाँ स्तन पूरा बाहर निकाल कर उसके सामने कर दिया और बोली,"लो, अब आराम से इसे दबा कर देखो।"

वो हिचकिचाया तो मैंने उसका हाथ पकड़ कर खुद ही अपने बूब पर रख दिया। उसने धीरे से दो एक बार मेरा बूब दबाया पर शायद यही उसके सब्र की आखरी हद थी, उसने बिना कुछ कहे अपना मुंह आगे किया और मेरा निप्पल मुंह में लेकर चूसने लगा। मैंने भी समझ लिया कि गाड़ी अब पटरी पर चल पड़ी है। मैंने अपना दूसरा स्तन भी नाईटी से बाहर निकाला और हाथ उसके पायजामे के ऊपर से उसके लण्ड पे फेरने लगी जो पहले से ही अकड़ा हुआ था।

"दीदी, सीधी होकर लेटो !" मयंक बोला।

जब मैं सीधी होकर लेटी तो मयंक ने उठ कर मेरी दोनों छातियाँ अपने हाथों में पकड़ी और बारी बारी से चूसने लगा और मैं उसकी पीठ सहलाने लगी। थोड़ी देर बूब्स चूसने के बाद मयंक ने मेरे गालों और होंटों को चूमना शुरू किया, मैंने भी मज़े लेते हुए उसका भरपूर साथ दिया। हम दोनों बारी बारी से अपनी जीभें एक दूसरे के मुंह में डाल कर चूस रहे थे।

फिर मैंने उससे कहा,"मयंक, पजामा उतारो !"अपने हाथों के दोनों अंगूठों से मेरी पेंटी उतार दी। अब उसने मेरे पेट, कमर और जांघों को चूमना-चाटना शुरू किया और धीरे-२ मेरी टाँगें चौड़ी करके अपनी जीभ मेरी चूत में फिराने लगा।फिर मैंने कहा,"मयंक, अब ऊपर आ जाओ !"

यह सुन कर मयंक मेरी टांगों के बीच में आकर बैठ गया और अपना लण्ड मेरी चूत के होठों में फिराने लगा, जिससे मेरी चूत के पानी से उसके लण्ड का सुपाड़ा गीला और चिकना हो गया। जब उसने अपना लण्ड अन्दर डालना चाहा तो उसके मुंह से हल्की सी "ऊऽऽऊऽऽहऽऽ" करके चीख सी निकल गई। मैं समझ गई कि संजू तुझे तो कच्चा कुँवारा लौड़ा मिल गया। उसने ३-४ बार कोशिश की पर हर बार तकलीफ के साथ उसे अपना लण्ड बाहर निकालना पड़ा।

वो बोला,"दीदी मुश्किल है, ये अन्दर ही नहीं जा रहा, और डालता हूँ तो दर्द होता है !"

मैंने कहा,"ऐसे नहीं जायेगा, मैं तुम्हें तरीका बताती हूँ !"मुझे पता था कि अगर इससे ना डाला गया तो मैं तो प्यासी रह जाउंगी, इसलिए मैंने उसको अपने ऊपर लिटाया, अपनी टांगों का घेरा उसकी कमर के चारों तरफ बना कर अपनी एडियाँ उसके चूतडों पे रखीं, फिर अपने दोनों हाथों से उसकी कमर को पकड़ा और उससे बोली," अब धीरे धीरे से घस्से मारते हुए अपना लण्ड मेरी चूत में डालने की कोशिश करो और अपनी जीभ मेरे मुंह में डाल दो ताकि मैं उसे चूस सकूं !"

उसने ऐसा ही किया और धीरे धीरे लण्ड चूत में डालने की कोशिश करने लगा, पर तकलीफ उसे अब भी हो रही थी। मैं भी मौक़ा देख रही थी, जब उसने कमर थोड़ी ढीली की तो मैंने पूरा जोर लगा अपने पांव से उसके चूतड़ और हाथों से उसकी कमर अपनी ओर खींची जिससे एक ही झटके में उसका लण्ड मेरी चूत में आधे से ज्यादा घुस गया।

अपने होंठों से मैंने उसके होंठ पकड़ रखे थे जिस वजह से वो चीख भी ना सका और उसकी चीख मेरे मुंह में ही दब गई। मुझसे अपने होंठ छुड़वा कर बोला,"दीदी प्लीज़ ! बाहर निकलने दो, बहुत दर्द हो रहा है, मुझे लगता है शायद खून निकल रहा है !"

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