धौलपुर का सराय छोला एक ऐसा गाँव है जहाँ एक परिवार के सभी भाई एक ही दुल्हन से ब्याह रचाते हैं। मध्यप्रदेश और राजस्थान की सीमा से लगे मुरैना से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर बसे इस गाँव में एक जाति एवं समूह विशेष के लोगों में बहुपति प्रथा सालों से चली आ रही है। शादी के बाद दुल्हन को बारी-बारी से सभी भाइयों के साथ रखा जाता है।
जिस तरह महाभारत के पांच पांडवों ने द्रोपदी से शादी की थी, उसी तरह इस गांव के पांच भाई मिलकर एक लड़की से शादी कर रहे हैं। ऐसा किसी रस्म या खुशी से नहीं बल्कि मजबूरी में किया जा रहा है। यहां बसे एक जाति एवं धर्म विशेष के लोगों में लड़कियों की कमी के चलते इस गांव के लोगों ने यह नियम बनाया है। इसके तहत गांव के जिस भी घर में लड़कों की संख्या एक से ज्यादा है वे सभी मिलकर सिर्फ एक ही लड़की से शादी करेंगे। इसके चलते गांव के लगभग सभी घरों में एक ही बहू है जबकि उसके पतियों की संख्या एक से ज्यादा है।
यदि परिवार का कोई भाई अकेले शादी कर दुल्हन लाता है तो उस पर उसके भाइयों का भी बराबर का हक होगा। सराय छोला में रहने वाले व्यक्ति ने नाम न बताने की शर्त पर बताया है कि उनके समाज में लड़कियों की कमी है जिसकी वजह से ऐसा हो रहा है। उनके अनुसार पूरे गांव में गिने चुने परिवार ही ऐसे हैं जिनमें किसी लड़की का एक ही पति है। वरना पिछले कुछ सालों में जिनती भी शादियाँ हुई हैं उनमें हर लड़की के एक से ज्यादा पति हैं। कई लड़कियाँ तो ऐसी हैं जिनके आठ पति हैं।
सराय छोला के आस-पास करीब 12 ऐसे गांव है जहाँ यह प्रथा सालों से जारी है जिसे गांव के लोग एक नियम की तरह मानते हैं। लेकिन आगे चलकर इसका अंजाम क्या होगा यह किसी ने नहीं सोचा है। प्रकृति के नियमों के खिलाफ इस प्रथा को अभी तक किसी ने रोकने की कोशिश नहीं की है। इस इलाके में एक ही परिवार में अगर एक से ज्यादा भाई अविवाहित हैं तो वे सभी मिलकर एक लड़की से शादी कर सकते हैं।
गांव के आस-पास के लोग भी इस प्रथा को धीरे-धीरे अपना रहे हैं। लगातार लड़कियों की हो रही हत्या से बदले लिंगानुपात से इस प्रथा को बढ़ावा मिल रहा है। यहाँ लड़कियों के पैदा होने को अपशगुन मानकर उसकी हत्या कर दी जाती थी। इस कुप्रथा के चलते समाज में लिंगानुपात बहुत बदल गया है।
यहां के लोग अपने पूर्वजों की गलतियों को समझ चुके हैं इसलिए कन्याओं की हत्या में काफी कमी आई है। लेकिन अब भी दूसरे समाज की लड़कियों से विवाह करने को समाज की मान्यता नहीं है जिसकी वजह से इस नई प्रथा का जन्म हुआ है।
दो राज्यों की सीमा पर बसे इन गांवों में शिक्षा की कमी इनके सामाजिक पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण है। सुविधाओं के नाम पर गांव में एक प्राथमिक विद्यालय है। आगे की पढ़ाई के लिए युवक-युवतियों को कम से कम 5 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। लिंगानुपात और महिला अधिकार जैसे शब्द ग्रामीणों के लिए अबूझ पहेली की तरह हैं।
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