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रविवार, 14 अक्तूबर 2012

चुदाई चुदाई और बस चुदाई



मैं छत पर बैठी हुई अपने ख्यालों में डूबी हुई थी। मुझे अपनी कक्षा में कोई भी लड़का अच्छा नहीं लगता था और ना ही कोई लड़का मेरी ओर देखता ही था।

नौकरानियाँ भी अकसर चुदती रहती हैं। लड़के आपस में गाण्ड मारते-मराते हैं, समधन को समधी ने चोद डाला या फिर अपने दामाद से ही चुदवा लिया। पर यहाँ तो ना मुझे कोई देखता है और ना ही मुझे कोई ऐसा लगा कि मैं जिससे चुदा सकूँ।
शायद इसी भावना के रहते मैंने कभी चुदाई की तरफ़ ध्यान नहीं दिया। मैं बार बार अपनी उभरी हुई चूचियों को निहारती, उन्हें दबाती भी, पर मुझे कोई भी सिरहन सी नहीं होती है। चूत को सहलाने से भी ऐसी कोई चुदवाने की इच्छा भी बलवती नहीं होती है।
हुंह ! यह सब बकवास है ... मात्र समय बरबाद करने का एक तरीका है।
फिर भी लड़कियाँ चुदती तो हैं ना !
उंह ! भला क्या मजा आता होगा।
"क्या बात है ... कहाँ खोई हो...?" चाचा ने मेरी कुर्सी को पीछे शरारत से झुला दिया।
"ओह चाचा ... कुछ नहीं बस यूँ ही... ईईई ... मत करो ना, मैं गिर जाऊँगी !" मैं घबरा कर बोल उठी।
कुर्सी को सीधे रखते हुये वो मुझे नीचे से ऊपर तक निहार कर बोले,"आज तो बहुत सुन्दर लग रही हो?"
"चाचा ... आप भी ना ... मुझे क्या छेड़ रहे हैं ?"
"अरे नहीं, सच में ... !"
मैंने चाचा को घूर कर देखा और जाने क्या मन में आया और फिर एक तीर मारा,"चाचा, डेशिंग तो आप लग रहे हो ... देखो क्या सेक्सी हो?" उनके पजामे के ऊपर से ही उनके कूल्हों पर एक हाथ मारा।
मैंने सोचा आज चाचा को आजमा कर देखते हैं, ऐसा-वैसा कुछ होता है या नहीं।
"सच मंजू, यह उमर ही सेक्सी होती है ... अपने आप को देख ... ऐसा फ़िगर ... क्या मस्त है।"
उनके कहते ही मुझे एकदम जैसे सिरहन सी हुई।
मैंने चाचू की तरफ़ देखा ... तो उनके चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान थी।
अरे बाबा ! यह तो लाईन मार रहा है।
"चाचू, लगता है आपकी अब शादी कर देनी चाहिये ... अब आपको सभी लड़कियाँ मस्त लगने लगी हैं !"
"शादी की क्या आवश्यकता है ... मस्ती तो बिना शादी के भी की जा सकती है !"
"वो कैसे भला ?" मुझे भी अब शरारत सूझने लगी थी। शायद मजाक ही मजाक में काम बन जाये।
तभी चाचू ने मेरे चूतड़ दबा दिए।
मुझ पर जैसे बिजली सी कड़क गई। अब मुझे लगा कि सच में यह खेल तो बड़ा ही आनन्द भरा है। मैं जैसे किसी अनजान तड़प से उछल पड़ी। यह इतना आनन्द कैसे आ गया राम !
"चाचू एक बार और दबा दो ना ..." मेरे मुख से अपने आप ही निकल पड़ा।
चाचू को तो जैसे हरी झण्डी मिल गई हो ... वो मेरे पीछे आ गये और मेरे दोनों चूतड़ों के मस्त उभार सहलाते हुये दबाने लगे। मेरी चूत में फ़ुरफ़ुरी सी होने लगी। आनन्द से मेरी आँखें बन्द होने लगी। आह तो ये आनन्द आता है !
इसका मतलब यह है कि मर्द के हाथों में जादू होता है।
"बस करो ... अब और नहीं... तुम्हारे हाथों में तो जादू है।"
पर सुनता कौन है, देर हो चुकी थी। तीर हाथ से निकल चुका था। उसने अब हाथ आगे बढ़ा कर मेरी चूचियों को दबा लिया था। मेरा शरीर मीठी सी गुदगुदी से कसमसा उठा। मुझे यह क्या क्या होने लगा था।
"बस अब छोड़ दो चाचू ... " मैं कसमसाई।
"कैसा लग रहा है मन्जू... " जैसे कहीं दूर से आवाज आई।
"हाय रे ... बस करते ही जाओ ... चाहे चोद डालो !" अन्तरवासना की भाषा मुख से निकल पड़ी।
"धीरे धीरे आगे बढ़ेंगे ... एक दम से चुदाई नहीं ... जवानी का मजा तो लो !"
"सच राजा ... मुझे नहीं मालूम था ... कि ऐसे करने से दिल में तड़प सी होने लगती है ... मसल डालो मेरी चूचियों को !" मुझे अपनी सारी सोच किसी कूड़े दान में जाती नजर आने लगी।
"बड़ी मस्त भाषा बोलती हो ...तेरी भेन दी फ़ुद्दी ... जब लण्ड से चुदोगी तो चूत में स्वर्ग नजर आयेगा।"
"आह, तेरा लौड़ा है या आनन्द की खान ... ला मुझे हाथ में दे दे ... साले को मसल डालूं !" अन्तरवासना के मधुर डॉयलोग मेरी जबान से शहद बन कर टपक रहे थे।
उसने मुझे कस कर चिपका लिया और उसके अधर मेरे गालों तक पहुँच गये थे। रात का धुंधलका बढ़ रहा था। मुझे भी वासना भरी मस्ती चढ चुकी थी। चाचू के रूप में मुझे मस्त, हट्टा-कट्टा जवान मिल गया था, उसका लण्ड जैसे ही हाथ में आया, मुझे लगा कि सारा जमाना मेरी मुट्ठी में है। उसे चाहे जैसे मरोड़ दूँ, चाहे जैसे घुमा दूँ।
"चाचू, चल नीचे जमीन पर लेटा कर मुझे रगड़ दे ... चाहे तो मेरी फ़ुद्दी मार दे !"
"नहीं, तेरे गद्दे पर लेट कर मजा लेंगे ... उछल उछल कर चुदाई करेंगे।"
"हाय रब्बा, कैसा बोलता है रे तू ... अभी तो रगड़ दे ... देख कैसी तड़प उठ रही है।"
हम दोनों एक दीवार के कोने में चिपके हुये लेट गये। वो मेरे ऊपर चढ़ गया और मुझे दबा डाला। मुझे उसका भार भी फ़ूल जैसा हल्का लगा। मेरी चूचियाँ उसने दबा डाली और मेरे मुख पर उसने चुम्बनों की बरसात कर दी। उसके लण्ड का कड़ापन मेरी चूत को रगड़ने लगा। मुझे पहली बार छातियाँ दबवाने में इतना कामुक मजा आया था। उसके खुशबूदार चुम्बन मुझे उसके गाल जीभ से चाट चाट कर उसे गीला कर देना चाहते थे।
हाय रे ! शहद से भी मीठा, मेरा चाचू !
"चाचा, बस चोद दे अब, नहीं रहा जाता है ... घुसा दे लौड़ा ... आह !!"
मैंने अपनी जींस नीचे सरका दी। चाचू ने भी अपनी जींस उतार दी। जल्दी से हमने अपनी अपनी चड्डियाँ उतार दी और चुदाई के लिये तैयार हो गये।
"जल्दी घुसा डाल, राजा ... जल्दी वार कर ना !"
मैंने अपने दोनों पांव ऊपर उठा लिये। उसने लण्ड मेरी चूत के द्वार पर रख कर दबाव डाला तो सीधा अन्दर उतर गया। मुझे तेज मीठी सी गुदगुदी हुई और लण्ड पूरा चूत में समा गया। जैसे ही अन्दर-बाहर लण्ड ने चाल पकड़ी,  पर मेरी झिल्ली का क्या हुआ ... वो तो फ़टी ही नहीं ... कुछ पता ही नहीं चला ! कोई दर्द ही नहीं हुआ। बस आनन्द ही आनन्द ... मस्ती ही मस्ती ... मैंने चाचू को जकड़ लिया और मस्ती से चुदाई में लग गई। दोनों ओर से कमर तेजी से चल रही थी।
तभी मैंने पलटी मार कर चाचू को नीचे दबा लिया। जाने मुझमें कहाँ से इतनी ताकत आ गई कि मैंने उसका खड़ा लौड़ा देख कर अपनी गाण्ड का छेद उस पर दबा दिया।
तो चल रे मादरचोद लौड़े, अब गाण्ड में घुस जा।
मुझे कोई अधिक महनत नहीं करनी पड़ी। जो दबा कर गाण्ड पर जोर लगाया तो एक बार चाचू ही चीख पड़ा।
"अरे चुप ना, साले मरवायेगा, गाण्ड नहीं मारनी आती है क्या?"
"अरे लगती है यार, तुझे नहीं लगती है?"
उसकी बातें मुझे आश्चर्य में डाल रही थी। मुझे क्यूँ लगेगी भला। उसका लण्ड मेरी गाण्ड में सरलता से सरकता चला गया। पर चाचू था कि दर्द से मरा जा रहा था। मैंने ऊपर से दो तीन मस्त धक्के लगाये तो मुझे अब कुछ दर्द हुआ।
उह ! मुझे तो गाण्ड में मजा नहीं आता है। मैंने कुछ ही देर में बाहर निकाल दिया और उसे अपनी चूत में घुसेड़ लिया। आह ! दिल में एक ठण्डक सी हुई। लण्ड अब सरलता से मेरी चूत में घुसा हुआ अलौकिक आनन्द दे रहा था।
चाचू को तो जैसे सांस में सांस आई। उस दिन मैंने चाचू को खूब मस्ती से चोदा और दिल की सारी हसरतें निकाल ली। फिर उसका गर्म-गर्म वीर्य मेरी चूत की गहराइयों में उगलने लगा। मुझे एक मस्ती का सा अहसास हुआ उसके झड़ने से। फिर मेरी चूत में से निकलता हुआ उसका गर्म-गर्म वीर्य, उसके पेडू को गीला करने लगा था।
मेरे मात्र एक दो तेज झटकों ने मेरा काम भी पूरा दिया। मैं भी झड़ने लगी।
शायद मुझे जिन्दगी में पहली बार झड़ने से ऐसा लगा कि मैंने मूत दिया हो।
काफ़ी सा पानी निकला मेरी चूत में से।
मैं झट से सीधे खड़ी हो गई। मेरी चूत में से गीलापन नीचे टपकता रहा। नीचे से चाचू निकल कर जल्दी से खड़ा हो गया और अपना लण्ड देखने लगा। शायद उसे कोई चोट लगी थी। पर नही ! सब ठीक था। हाँ, उसकी पीठ पर जमीन की रगड़ से खरोंचे जरूर पड़ गई थी। उसकी पीठ जमीन की धूल से भर गई थी। उसने अपना पजामा लेकर मेरे पीठ की धूल भी साफ़ कर दी थी।
"चाचू, मजा आ गया ना?"
"हुंह, साली ने मुझे रगड़ दिया, ऐसे भी कोई करता है क्या !"
"अरे चाचू, यार इसमें मजा तो बहुत आता है, अब तो रोज ही रगड़म-पट्टी करेंगे।"
चाचू मुझे देखे जा रहा था। शायद वो मेरी बात समझ नहीं पा रहा था। पर मुझे वो अनोखा अनुभव मिल चुका था जिसके लिये लड़के और लड़कियाँ दीवाने रहते हैं 

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