मेरी बहन सविता मुझसे बड़ी है। पूरा नाम तो ज़ीनत है पर हम उसे प्यार से सविता कहते हैं।
मैं उस वक्त 18 साल का था, पिछ्ले कई दिनों से उसे देख कर मुझे कुछ होने लगता था, कुछ ज्यादा ही अच्छी लगने लगी थी। गुलाबी होंठ, नशीली आँखें, लम्बे बाल और बदन से आती भीनी सी महक। तब तक तो सब कुछ ठीक था लेकिन एक दिन वो पेट के बल लेट कर शायद मैगजीन पढ़ रही थी और मैं सामने से आ गया।
क्या नजारा था यार !
उसकी टी-शर्ट के गले से दोनों स्तन दिख रहे थे।
पहली बार अहसास हुआ सविता की जवानी का !
तब मैंने उसे ध्यान से देखा तो सविता कुछ ऐसी दिखी : गुलाबी होंठ, नशीली आँखें, लम्बे बाल और गोरी बाँहें (स्लीवलेस टीशर्ट पहने थी सविता ), गोल-गोल चूचे, पतली कमर, मोटी सी उभरी हुई गाण्ड ………।
अब वो मुझे मेरी बहन से एक सेक्सी लड़की लग रही थी जो अभी शायद चुदी नहीं थी और मैं उसे चोदना चाहता था।
फिर उसने मुझे देखा और हमेशा की तरह मुस्कुराई। मैं भी मुस्कुरा कर बाहर आ गया और सीधा जाकर बाथरूम में हस्तमैथुन करने लगा।
मैं और सविता एक ही कमरे में सोते थे। रोज की तरह खाने के बाद हम पढ़ने के लिये कमरे में आ गये और पापा-मम्मी अपने कमरे में चले गये। सविता तो रजाई में बैठ कर पढ़ रही थी मगर मेरी नज़र तो उसके वक्ष पर थी, मन कर रहा था कि अभी जा कर ज़ेनी के मम्मे दबा दूँ, उसके होंठों को चूम लूँ !
मगर मन मार कर रह गया।
तभी सविता बोली, "विमल, आज सुबह से बड़े चुपचाप से हो? क्या बात है?"
मैं सकपका सा गया। कहीं इसे शक तो नहीं हो गया?
"नहीं, आज सर्दी कुछ ज्यादा है, इसलिये कहीं मन नहीं लग रहा है" मैंने जवाब दिया।
"ठीक है। मैं तो सोने जा रहीं हूँ। तुम भी जल्दी सो जाना।" यह कह कर वो रजाई ओढ़ कर लेट गई और मैं उसे देखता रहा।
अजीब सा नशा या पागलपन सवार था। सही या गलत का अहसास खत्म हो गया था। मुझे तो बस दिख रहा था तो सविता का गदराया हुआ बदन और उसकी चूत की छवि जो बचपन में एक बार देखी थी।
मैं उसके पास जाकर बैठ गया और धीरे से उसके उभारों से रजाई हटा दी। उसके उभार सांसों के साथ ऊपर-नीचे हो रहे थे। यह देख कर मेरा लंड खड़ा होने लगा। मुझसे रहा नहीं जा रहा था और फट भी रही थी।
मैंने रजाई और नीचे सरका दी और उसके पेट के ऊपर से नाईटी के तीन बटन खोल दिए।
मुझे लड़कियों की नाभि बहुत पसंद है। सविता का सपाट चिकना और गोरा पेट मेरे सामने था, उसकी गोल हल्की लम्बी और गहरी नाभि सासों के साथ हिल रही थी। मेरी हालत खराब हो रही थी, दिल की धड़कनें तेज हो गई और साँस रुकने सी लगी। मन किया कि अभी उसकी नाभि को चूम लूँ या उसमे उँगली डाल दूँ।
फिर मैं आखिर उसकी नाभि को सहलाने लगा। कितनी नर्म, मुलायम त्वचा थी ज़ीनत की ! एकदम फूलों की तरह !
सविता जगी नहीं थी इसलिए मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैंने उसकी नाईटी के बाकी के दो बटन भी खोल दिए। अब सविता के ऊपरी बदन पर सिर्फ़ गुलाबी ब्रा बची हुई थी जिसमें से आधे स्तन और पूरी वक्षरेखा दिख रही थी। क्या गोल कसे हुए मम्मे थे !
मैंने हौले से उसके एक स्तन पर हाथ रख दिया मगर दबाया नहीं, पहली बार किसी के मम्मे छू रहा था। लन्ड पूरे उफ़ान पर था। तभी मेरी नज़र उसके होंठों पर गई। सुर्ख लाल अधरों से रस टपक रहा था। अचानक मैंने एक हाथ से सविता की कमर पकड़ी, दूसरे से उसके चूचे को दबाया और उसके रसीले होंठों पर अपने होंठ रख दिये।
हाय! क्या पल थे वो !
जैसे इससे मीठी और मज़ेदार दुनिया में और कोई चीज नहीं। नींद में सविता ने भी मेरा साथ दिया और हम दोनों चुम्बन करते रहे।
तभी सविता जाग गई।
"क्या कर रहे हो?" वो चिल्लाई।
मगर मैंने उसे छोड़ा नहीं। मैंने सोच लिया जो करना अभी कर लो बाद मौका न मिला तो?
वह मुझे दूर हटाने लगी मगर मैं उसे जकड़े हुआ था, वो हार गई और बोली,"क्या करना चाहते हो? मैं तुम्हारी बहन हूँ।"
"तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो। बस एक बार तुम्हारी चूत देखना चाहता हूँ।"
"क्या बकवास कर रहे हो? मैं ऐसा नहीं कर सकती।"
"मैं कुछ नहीं करूँगा। सिर्फ़ देखूँगा, प्लीज !"
"नहीं !"
"प्लीज !"
मैंने तभी उसकी ब्रा खोल दी। उसके मम्मे उचल कर बाहर आ गये। मैं उन चूचों को मसलने लगा और सविता को शायद मज़ा आने लगा था इसलिये कोई विरोध नहीं किया।
"सिर्फ़ देखना, और कुछ मत करना ! ओ के?" सविता बोली।
उसके भूरे चुचूक कड़े हो गए थे।
ज़ेनी की बात सुन कर मेरी जान में जान आ गई।
"ओ के !" अब मैंने उसके बदन से नाइटी हटा दी।
वो अधनंगी हो गई थी। मैं उसको एक बार फिर चूमने लगा। अबकी बार वो मेरा पूरा साथ दे रही थी। मैंने उसे बिस्तर पर सीधा किया, उसके हाथों को पकड़ा और उसके मम्मों को चूसने लगा। "आहाऽऽ... आऽऽ.. आआह... आह... ! सविता की आहें सुनाई दे रही थी। मैं फिर नीचे पेट तक पहुँच गया और नाभि चूमने लगा। क्या मजा आ रहा था। मैंने उसका पजामा उतार दिया और जाँघें सहलाने लगा।
सविता को मजा आने लगा था। वो अपने मम्मे दबा रही थी।
और फिर मैंने उसकी पैंटी को देखा। बस वो ही बची थी उसके दूधिया बदन पर। धीरे से मैंने उसकी पैंटी उतार दी और दुनिया की सबसे नायाब चीज मेरे सामने थी। हल्की गुलाबी कसी हुई अनचुदी चूत। सविता ने शर्म से आँखें बन्द कर लीं। मैंने उसकी टाँगों को फैला दिया और चूत को सहलाने लगा। क्या चमक रही थी सविता और उसकी चूत। रुई की तरह मुलायम। तभी मैंने उसकी चूत की फाँकों को अलग करके छेद को देखा और उसे छूने लगा।
"ओ नो, ऐसे मत करो !" सविता बोली।
मगर मैं उसके छेद को सहलाता रहा।
"तुमने कहा था सिर्फ़ देखोगे आऽऽ... आ... आह्ह्ह...!!"
मैंने चूत में उँगली डाल दी।
"मत करो, प्लीज !"
मैं उँगली आगे-पीछे करने लगा और सविता आहें भरती रही- आहाऽऽ... आऽऽ.. आआह... आह... स्स्स आह !
मैं अब उसकी चूत चाटने लगा। सविता पागल हो रही थी- ओ आहाऽऽ... आऽऽ... यस स्स्स आआह... !!!
उसकी ऐसी सिसकारियाँ सुन कर मुझे बहुत मजा आ रहा था। अब मैंने अपने सारे कपड़े उतार दिये और सविता के बदन को एक बार फिर चाटने लगा- होंठ, स्तन, नाभि और चूत।
कभी सोचा भी नहीं था कि सविता को यों निपट नंगी देखूँगा मैं !
अब सविता गरम हो चुकी थी। मैंने सविता की कमर के नीचे तकिया लगा दिया और टाँगें फैला कर ऊपर कर दी। उसकी चूत रस छोड़ने लगी थी और फूल गई थी जैसे लंड के लिये बेताब हो। मैंने अपना लंड उसकी चूत से छुआ दिया। सविता ने आँखें बंद कर लीं। मैंने जोर लगाया और उसकी चूत फैल गई और लगा तो लंड छेद के अंदर झिल्ली तक घुस गया।
आ...आऽऽऽ... आह... स्स्स्सा..आह !!!
फिर मैंने एक झटका दिया और मेरा लंड सविता की चूत की झिल्ली फाड़ता हुआ और अंदर घुस गया।
आऽऽऽऽ आआआऽऽऽऽ अह्ह्ह्हाआ...आऽऽऽ... आह... ! सविता चिल्लाई।
मगर मैंने उसका मुँह बंद कर दिया। अब उसका कौमार्य भंग हो चुका था। थोड़ी देर मैंने कुछ नहीं किया। जब वो सामान्य हो गई तब उसने कहा," अब करो !"
मैंने पूरा जोर लगाया मगर बहुत कसी चूत थी, लंड डालने में दिक्कत हो रही थी। मैंने एक जोर का झटका दिया और पूरा लंड सविता की चूत में समा गया।
आआहाअ आह/ कितनी गर्म चूत थी बिल्कुल चिकनी पूरे लंड से चिपक गई थी।सविता को भी मेरा लंड डलवा कर मजा आ रहा था। उसने मुझे अपनी ओर खींच कर बदन से चिपका लिया । मैं उसे किस करने लगा और साथ में झटके देने लगा। हर झटके के साथ सविता की आह निकल रही थी जो मुझे और उत्तेजित कर रही थी।
आऽऽ... आ... आह्ह्ह...स !! सविता मजे ले रही थी मेरे लंड का।
उसने अपनी टाँगें फैला कर मेरी कमर के ऊपर कर ली। मैंने झटके तेज कर दिये और सविता तड़पने लगी। पाँच मिनट तक मैं उसे चोदता रहा। और फिर सविता ढीली पड़ने लगी और मैंने पानी अंदर ही छोड़ दिया। फिर दोनों एक ही रजाई में सो गये।
सुबह सविता बहुत खुश लग रही थी और मैं भी।
मैंने सविता से से पूछा,"अब कब दे रही हो?"
"जब भी चाहो, मुझे चोद सकते हो !" सविता मुस्कुरा कर बोली और मैंने उसे चूम लिया।
अब मुझे कोई गर्लफ्रेंड नहीं चाहिए !सविता ने मुझसे अपनी कई सहेलियों को भी चुदवाया और मेरे दोस्तों को भी अपनी कई सहेलियों से मिलवाया।
मैं उस वक्त 18 साल का था, पिछ्ले कई दिनों से उसे देख कर मुझे कुछ होने लगता था, कुछ ज्यादा ही अच्छी लगने लगी थी। गुलाबी होंठ, नशीली आँखें, लम्बे बाल और बदन से आती भीनी सी महक। तब तक तो सब कुछ ठीक था लेकिन एक दिन वो पेट के बल लेट कर शायद मैगजीन पढ़ रही थी और मैं सामने से आ गया।
क्या नजारा था यार !
उसकी टी-शर्ट के गले से दोनों स्तन दिख रहे थे।
पहली बार अहसास हुआ सविता की जवानी का !
तब मैंने उसे ध्यान से देखा तो सविता कुछ ऐसी दिखी : गुलाबी होंठ, नशीली आँखें, लम्बे बाल और गोरी बाँहें (स्लीवलेस टीशर्ट पहने थी सविता ), गोल-गोल चूचे, पतली कमर, मोटी सी उभरी हुई गाण्ड ………।
अब वो मुझे मेरी बहन से एक सेक्सी लड़की लग रही थी जो अभी शायद चुदी नहीं थी और मैं उसे चोदना चाहता था।
फिर उसने मुझे देखा और हमेशा की तरह मुस्कुराई। मैं भी मुस्कुरा कर बाहर आ गया और सीधा जाकर बाथरूम में हस्तमैथुन करने लगा।
मैं और सविता एक ही कमरे में सोते थे। रोज की तरह खाने के बाद हम पढ़ने के लिये कमरे में आ गये और पापा-मम्मी अपने कमरे में चले गये। सविता तो रजाई में बैठ कर पढ़ रही थी मगर मेरी नज़र तो उसके वक्ष पर थी, मन कर रहा था कि अभी जा कर ज़ेनी के मम्मे दबा दूँ, उसके होंठों को चूम लूँ !
मगर मन मार कर रह गया।
तभी सविता बोली, "विमल, आज सुबह से बड़े चुपचाप से हो? क्या बात है?"
मैं सकपका सा गया। कहीं इसे शक तो नहीं हो गया?
"नहीं, आज सर्दी कुछ ज्यादा है, इसलिये कहीं मन नहीं लग रहा है" मैंने जवाब दिया।
"ठीक है। मैं तो सोने जा रहीं हूँ। तुम भी जल्दी सो जाना।" यह कह कर वो रजाई ओढ़ कर लेट गई और मैं उसे देखता रहा।
अजीब सा नशा या पागलपन सवार था। सही या गलत का अहसास खत्म हो गया था। मुझे तो बस दिख रहा था तो सविता का गदराया हुआ बदन और उसकी चूत की छवि जो बचपन में एक बार देखी थी।
मैं उसके पास जाकर बैठ गया और धीरे से उसके उभारों से रजाई हटा दी। उसके उभार सांसों के साथ ऊपर-नीचे हो रहे थे। यह देख कर मेरा लंड खड़ा होने लगा। मुझसे रहा नहीं जा रहा था और फट भी रही थी।
मैंने रजाई और नीचे सरका दी और उसके पेट के ऊपर से नाईटी के तीन बटन खोल दिए।
मुझे लड़कियों की नाभि बहुत पसंद है। सविता का सपाट चिकना और गोरा पेट मेरे सामने था, उसकी गोल हल्की लम्बी और गहरी नाभि सासों के साथ हिल रही थी। मेरी हालत खराब हो रही थी, दिल की धड़कनें तेज हो गई और साँस रुकने सी लगी। मन किया कि अभी उसकी नाभि को चूम लूँ या उसमे उँगली डाल दूँ।
फिर मैं आखिर उसकी नाभि को सहलाने लगा। कितनी नर्म, मुलायम त्वचा थी ज़ीनत की ! एकदम फूलों की तरह !
सविता जगी नहीं थी इसलिए मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैंने उसकी नाईटी के बाकी के दो बटन भी खोल दिए। अब सविता के ऊपरी बदन पर सिर्फ़ गुलाबी ब्रा बची हुई थी जिसमें से आधे स्तन और पूरी वक्षरेखा दिख रही थी। क्या गोल कसे हुए मम्मे थे !
मैंने हौले से उसके एक स्तन पर हाथ रख दिया मगर दबाया नहीं, पहली बार किसी के मम्मे छू रहा था। लन्ड पूरे उफ़ान पर था। तभी मेरी नज़र उसके होंठों पर गई। सुर्ख लाल अधरों से रस टपक रहा था। अचानक मैंने एक हाथ से सविता की कमर पकड़ी, दूसरे से उसके चूचे को दबाया और उसके रसीले होंठों पर अपने होंठ रख दिये।
हाय! क्या पल थे वो !
जैसे इससे मीठी और मज़ेदार दुनिया में और कोई चीज नहीं। नींद में सविता ने भी मेरा साथ दिया और हम दोनों चुम्बन करते रहे।
तभी सविता जाग गई।
"क्या कर रहे हो?" वो चिल्लाई।
मगर मैंने उसे छोड़ा नहीं। मैंने सोच लिया जो करना अभी कर लो बाद मौका न मिला तो?
वह मुझे दूर हटाने लगी मगर मैं उसे जकड़े हुआ था, वो हार गई और बोली,"क्या करना चाहते हो? मैं तुम्हारी बहन हूँ।"
"तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो। बस एक बार तुम्हारी चूत देखना चाहता हूँ।"
"क्या बकवास कर रहे हो? मैं ऐसा नहीं कर सकती।"
"मैं कुछ नहीं करूँगा। सिर्फ़ देखूँगा, प्लीज !"
"नहीं !"
"प्लीज !"
मैंने तभी उसकी ब्रा खोल दी। उसके मम्मे उचल कर बाहर आ गये। मैं उन चूचों को मसलने लगा और सविता को शायद मज़ा आने लगा था इसलिये कोई विरोध नहीं किया।
"सिर्फ़ देखना, और कुछ मत करना ! ओ के?" सविता बोली।
उसके भूरे चुचूक कड़े हो गए थे।
ज़ेनी की बात सुन कर मेरी जान में जान आ गई।
"ओ के !" अब मैंने उसके बदन से नाइटी हटा दी।
वो अधनंगी हो गई थी। मैं उसको एक बार फिर चूमने लगा। अबकी बार वो मेरा पूरा साथ दे रही थी। मैंने उसे बिस्तर पर सीधा किया, उसके हाथों को पकड़ा और उसके मम्मों को चूसने लगा। "आहाऽऽ... आऽऽ.. आआह... आह... ! सविता की आहें सुनाई दे रही थी। मैं फिर नीचे पेट तक पहुँच गया और नाभि चूमने लगा। क्या मजा आ रहा था। मैंने उसका पजामा उतार दिया और जाँघें सहलाने लगा।
सविता को मजा आने लगा था। वो अपने मम्मे दबा रही थी।
और फिर मैंने उसकी पैंटी को देखा। बस वो ही बची थी उसके दूधिया बदन पर। धीरे से मैंने उसकी पैंटी उतार दी और दुनिया की सबसे नायाब चीज मेरे सामने थी। हल्की गुलाबी कसी हुई अनचुदी चूत। सविता ने शर्म से आँखें बन्द कर लीं। मैंने उसकी टाँगों को फैला दिया और चूत को सहलाने लगा। क्या चमक रही थी सविता और उसकी चूत। रुई की तरह मुलायम। तभी मैंने उसकी चूत की फाँकों को अलग करके छेद को देखा और उसे छूने लगा।
"ओ नो, ऐसे मत करो !" सविता बोली।
मगर मैं उसके छेद को सहलाता रहा।
"तुमने कहा था सिर्फ़ देखोगे आऽऽ... आ... आह्ह्ह...!!"
मैंने चूत में उँगली डाल दी।
"मत करो, प्लीज !"
मैं उँगली आगे-पीछे करने लगा और सविता आहें भरती रही- आहाऽऽ... आऽऽ.. आआह... आह... स्स्स आह !
मैं अब उसकी चूत चाटने लगा। सविता पागल हो रही थी- ओ आहाऽऽ... आऽऽ... यस स्स्स आआह... !!!
उसकी ऐसी सिसकारियाँ सुन कर मुझे बहुत मजा आ रहा था। अब मैंने अपने सारे कपड़े उतार दिये और सविता के बदन को एक बार फिर चाटने लगा- होंठ, स्तन, नाभि और चूत।
कभी सोचा भी नहीं था कि सविता को यों निपट नंगी देखूँगा मैं !
अब सविता गरम हो चुकी थी। मैंने सविता की कमर के नीचे तकिया लगा दिया और टाँगें फैला कर ऊपर कर दी। उसकी चूत रस छोड़ने लगी थी और फूल गई थी जैसे लंड के लिये बेताब हो। मैंने अपना लंड उसकी चूत से छुआ दिया। सविता ने आँखें बंद कर लीं। मैंने जोर लगाया और उसकी चूत फैल गई और लगा तो लंड छेद के अंदर झिल्ली तक घुस गया।
आ...आऽऽऽ... आह... स्स्स्सा..आह !!!
फिर मैंने एक झटका दिया और मेरा लंड सविता की चूत की झिल्ली फाड़ता हुआ और अंदर घुस गया।
आऽऽऽऽ आआआऽऽऽऽ अह्ह्ह्हाआ...आऽऽऽ... आह... ! सविता चिल्लाई।
मगर मैंने उसका मुँह बंद कर दिया। अब उसका कौमार्य भंग हो चुका था। थोड़ी देर मैंने कुछ नहीं किया। जब वो सामान्य हो गई तब उसने कहा," अब करो !"
मैंने पूरा जोर लगाया मगर बहुत कसी चूत थी, लंड डालने में दिक्कत हो रही थी। मैंने एक जोर का झटका दिया और पूरा लंड सविता की चूत में समा गया।
आआहाअ आह/ कितनी गर्म चूत थी बिल्कुल चिकनी पूरे लंड से चिपक गई थी।सविता को भी मेरा लंड डलवा कर मजा आ रहा था। उसने मुझे अपनी ओर खींच कर बदन से चिपका लिया । मैं उसे किस करने लगा और साथ में झटके देने लगा। हर झटके के साथ सविता की आह निकल रही थी जो मुझे और उत्तेजित कर रही थी।
आऽऽ... आ... आह्ह्ह...स !! सविता मजे ले रही थी मेरे लंड का।
उसने अपनी टाँगें फैला कर मेरी कमर के ऊपर कर ली। मैंने झटके तेज कर दिये और सविता तड़पने लगी। पाँच मिनट तक मैं उसे चोदता रहा। और फिर सविता ढीली पड़ने लगी और मैंने पानी अंदर ही छोड़ दिया। फिर दोनों एक ही रजाई में सो गये।
सुबह सविता बहुत खुश लग रही थी और मैं भी।
मैंने सविता से से पूछा,"अब कब दे रही हो?"
"जब भी चाहो, मुझे चोद सकते हो !" सविता मुस्कुरा कर बोली और मैंने उसे चूम लिया।
अब मुझे कोई गर्लफ्रेंड नहीं चाहिए !सविता ने मुझसे अपनी कई सहेलियों को भी चुदवाया और मेरे दोस्तों को भी अपनी कई सहेलियों से मिलवाया।
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