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रविवार, 21 अक्तूबर 2012

चढ़ती जवानी की मस्ती



शादी के बाद से नज़मा भाभी की चुदाई बहुत ही कम हुई थी। जवान तन लण्ड का प्यासा था। मुझे रोज चुदते देख कर उसका मन भी मचल उठा। वो रोज छुप छुप कर अब्दुल से मेरी चुदाई देखा करती थी। जब वो गाण्ड मारता था तो भाभी का दिल हलक में अटक जाता था। भैया को बस धंधे से मतलब था। रात को दारू पीता और थकान के मारे जल्दी सो जाता था। सात दिन पहले वो मुम्बई चला गया था।
नज़मा भाभी आज तो ठान रखी थी कि मुझसे बात करके कुछ काम तो फ़िट कर ही लेगी।
भाभी ने मेरा हाथ पकड़ा और कहा,"बानो छत पर चल, एक जरूरी काम है !"
"यहीं बोल दे ना ... !"
"अब तू भी गाण्ड फ़ुला कर नखरे दिखा ! ... कहा ना जरूरी काम है !"
"चूतिया टाईप बातें मत कर ... गाण्ड जैसा अपना मुँह खोल ... बोल क्या बात है !"
"साली हारामजादी ... मां चुदा ! ... नहीं बताती ... !"
"हाय मेरी भाभी जान ... चल फिर ... लगता है जरूर कोई बात है !"
भाभी ने मेरा हाथ पकड़ा और लगभग खींचती हुई छत की ओर छलांगें मारती हुई सीढ़ियाँ चढ़ने लगी। छ्त पर पहुंचते ही वो हांफ़ने लगी। उसकी छातियाँ ऊपर नीचे होने लगी।
"सुन ... एक बात कहूँ ... बुरा तो नहीं मानेगी ना ... " उसने बड़ी मुश्किल से उखड़ती आवाज में कहा।
"बोल ना ... दिल में इतनी बेचैनी ... क्या बात है ... किसी ने चोद मारा है क्या ... ?"
"बात ही कुछ ऐसी है ... देख नाराज मत होना ... !"
मैंने उसे हैरानी से देखा ... "बोल ना ... ऐसा क्या है?"
"बहुत दिन हो गये, तेरे भाई जान तो यहाँ है नहीं ... !" वो अटकते हुए बोली।
"हाँ तो ... आ जायेंगे ना ...! "
"वो तेरा दोस्त है ना, अब्दुल ... उससे मेरी दोस्ती करवा दे !" भाभी ने जमीन की ओर देखते हुये कहा।
"ओह हो ... मेरी भाभी की चूत चुदासी हो गई है ... चुदना है क्या?"
"बानो ! ... प्लीज़ देख मजाक मत कर ... मेरी हालत बहुत खराब हो रही है ... देख, चूत में से पानी टपक रहा है !"
"अच्छा ... पहले देखूँ तो कितनी बैचेन है भाभी की चूत ... " मैंने उसकी चूत दबा दी।
सच में रसीली हो चुकी थी।
तो भोसड़ी की ! रान्ड को चुदवाना है ? मैंने कहा।
"सच रे ... ये तो बहुत ही चुदासी है ... साली पहले क्युँ नहीं चुदवा लिया ... कब चुदवाओगी ... ... कब बुलाऊँ उसे ...??? "
"आज रात को ही चुदवा दे ना मुझे ... "भाभी ने कातर नजरो से मुझे देखा। मुझे उस पर दया आ गई ...
अब्दुल तो शाम को सात बजे ही घर पर आ गया था। शाम का धुंधलका बढ़ गया था। हम दोनों छत पर आ गये। दूसरी छतों पर लोग थे।
"बानो, भाभी आये उसके पहले कुछ हो जाये ... ?" अब्दुल बोला।
मुझे डर सा लगा, पर तुरन्त आईडिया आ गया। दीवार की आड़ में मस्ती कर लेते हैं।
"अच्छा तो नीचे बैठ जा और मेरी चूत खोल ले ... ऊपर तो कुछ दिखेगा नहीं"
मैं दीवार पर खड़ी हो गई ताकि कमर तक दीवार आ जाये ... वो नीचे बैठ गया और मेरी सफ़ेद पेन्टी नीचे उतार दी। मेरी चूत उसके सामने थी। उसने नीचे कुर्सी की गद्दी लगा ली और वो दीवार से टिक कर आराम से बैठ गया, और मेरी चूत से खेलने लगा। कभी मेरी चूत को सहलाता, तो कभी मेरे दाने को छू लेता ...
फिर दोनों हाथों से मेरे चूतड़ों को पकड़ कर दबा देता और मेरे गाण्ड के छेद में अंगुली डाल देता। बड़ा मजा आ रहा था। उसका लण्ड खड़ा हो गया था। सो जिप खोल कर उसने लौड़ा बाहर निकाल लिया और मुठ मारने लगा। उसके हाथ कभी कभी मेरे टॉप के अन्दर भी घुस जाते थे। मुझे डर लगता कि कोई मादरचोद मुझे देख ना ले, सो उसका हाथ पकड़ कर वापस नीचे ले जाती।
"चूतिये ... ऊपर मत कर ... कोई देख लेगा तो ... मेरी तो माँ चुद जायेगी !"
"बानो धीरे से नीचे बैठ जा ... तब तो कोई नहीं देखेगा ना !" मैं उसकी तरकीब समझ नहीं पाई। मैने नीचे देखा और धीरे से बैठ गई और उसका लण्ड सीधा मेरी चूत में घुस गया। लण्ड चूत में घुसते ही मुझे उसकी बात पल्ले पड़ गई और हंस दी।
"भोसड़ी के ... मुझे चोदेगा क्या ... ? भाभी को आने दे ना ... !" मैंने उसका लौड़ा बाहर निकाल दिया।
तभी छत के कमरे में से मुझे खिड़की से झांकती हुई भाभी नजर आ गई। वो वहाँ खड़ी खड़ी अपनी चूंचियाँ मसल रही थी। जाने वो कब से खड़ी हो कर हमें देख रही थी। उसने मेरे देखते ही इशारा किया। मैंने अब्दुल को दूर हटा दिया।
"सुन रे गाण्डू, कपड़े पहन ले ... भाभी आने वाली है !" मैंने अब्दुल को लताड़ा।
अब्दुल ने कपड़े पहन लिये और खड़ा हो गया। मैंने भी अपने कपड़े सही कर लिए। सब कुछ सही देख कर भाभी कमरे में से बाहर छत पर आ गई।
भाभी जान के आते ही अब्दुल जैसे तैयार हो गया। मैने भाभी को इशारा किया कि क्या शुरु करें कार्यक्रम?
वो तो जैसे पहले ही गरम हो चुकी थी। उसका हाथ तो चूत पर ही था और उसे दबा रखा था ... मानो पेटीकोट दबा रखा हो।
"अब्दुल, यह है नजमा भाभी ... तुम्हें याद कर रही थी !"
"सलाम, भाभी जान ... आप तो बड़ी खूबसूरत हैं !"
प्रत्युत्तर में भाभी मुस्कराई और बोली,"मुझे तो बानो ने बताया कि आप तो कमाल के हैं !"
"यह भोसड़ी का तो बस ... चुदाई में कमाल दिखाता है ... " मैंने उन दोनों को खोलने की कोशिश की।
"चल हट री भेन की लौड़ी ... वो तो सभी मर्द होते हैं !" भाभी ने खुलना ही मुनासिब समझा।
"भाभी जान ... आपकी बात तो अलग लग रही है ... आपके पोन्द तो कैसे मस्त हैं !" अब्दुल ने पास आते हुए कहा।
"हाय अल्लाह ... आप तो पोंद पर ही आ गए ... मैंने तो आपके बारे में अभी कुछ नहीं कहा ?"
अब्दुल ने सीधा आक्रमण कर दिया। भाभी के उभरे हुए मस्त पोंद दबा दिये।
"भाभी इसे यानि पोंद मरवा कर देखो ... " गाण्ड में अब्दुल ने अंगुली करते हुये कहा।
"आईईई ... बानो ... मेरी पोंद दबा दी इसने ... !"
"अब्दुल चूंचे भी दबा दे ... जल्दी कर ... " मैंने अब्दुल को इशारा किया।
अब्दुल ने उसके पीछे आ कर दोनों चूंचिया दबा दी। भाभी के मुँह से सिसकारी निकल पड़ी।
"अरे हट छोड़ मुझे, किसी ने देख लिया तो रट्टा हो जायेगा !" भाभी ने यहां वहां देखा और घबरा कर कहा ... "चल वहीं बैठ जा, जहां तू बानो की चूस रहा था।"
अब्दुल तुरन्त वहीं जा कर बैठ गया और भाभी जान अब्दुल के पास गई और अपना पेटीकोट उठाया और उस पर डाल दिया।
"बानो, शुक्रिया मेरी जान ... अब तो अब्दुल से मैं चुदा लूंगी ... चल रे अब्दुल ... शुरू हो जा ... " भाभी ने मुस्करा कर मुझे देखा और आंख मार दी और भाभी के मुख से आह निकल पड़ी। मैं समझ गई कि अब्दुल ने कुछ अन्दर किया है।
"हाय अब्बा ... डाल दे अंगुली ... पूरी घुसेड़ दे रे ... "
भाभी ने मुझे पकड़ लिया। मैं भाभी की चूंचियाँ दबाने लगी। उसने मुझे वासना भरी नजर से देखा और सिसकारी भरने लगी। " बानो, यह तो मस्त लड़का है रे ... चूत का पानी ही निकाल देगा !"
"भाभी जान ... मस्त हो जा ... अब तेरे पेटीकोट में क्या हो रहा है मैं क्या जानू रे ... "
"हाँ बानो ... ये अन्दर की बात है ... साला गजब चूत चूसता है ... हाय मुझे मूत आ रहा है !" नजमा भाभी मचलती हुई बोली।
"मूत दे भाभी ... मैं चूत खोलता हूँ ... "अब्दुल पेटीकोट के अन्दर से बोला।
"हाय मेरी अम्मा ... " भाभी ने जरा सा जोर लगाया और मूतना चालू कर दिया। अब्दुल अन्दर ही अन्दर उसके पेशाब का आनन्द लेने लगा। अपना मुँह गीला कर लिया और अपना मुँह खोल कर पेशाब भर लिया।
"और निकाल मूत ... भाभी ... क्या स्वाद है ... " उसने चूत में अपना मुँह घुसा कर चाटने लगा।
"बैठ जा भाभी जान ... आजा ... " भाभी धीरे से उकडू बैठ गई और मुख से एक आनन्द भरी सीत्कार निकल गई ... "हाय रे ... लण्ड घुस गया चूत में ... " अब्दुल ने लण्ड घुसते ही पेटीकोट अपने ऊपर से हटा लिया और भाभी को जकड़ लिया। अब्दुल का लण्ड चूत में पूरा घुस गया था। मैंने तुरन्त वहा फ़ैला हुआ पेशाब साफ़ किया और दौड़ कर दरी ले आई और भाभी के पीछे लगा दी। अब्दुल ने भाभी को कसे हुए दरी पर लेटा दिया और लण्ड को चूत में फिर से घुसेड़ दिया।
"हाय अब्दुल ... तेरा लौड़ा कितना प्यारा है ... पूरा ही अन्दर तक उतर गया ... अह्ह्ह्ह"
अब्दुल अब ठीक से सेट हो कर उस पर लेट गया और चोदने का आनन्द लेने लगा। मैंने भी भाभी की गाण्ड में अपनी अंगुली डाल दी।
"बानो ... मजा आ गया ... एक अंगुली और डाल दे ...! "
मैंने भाभी की गाण्ड में दो अंगुलियां डाल दी और घुमाने लगी। मुझे एक शरारत और सूझी, अब्दुल की गाण्ड में भी दूसरे हाथ की अंगुली डाल दी।
"बानो, तू साली चुपचाप नहीं बैठ सकती है ना ... साला युसुफ़ गाण्ड चोद जाता है वो कम है क्या ?"
"क्या, युसुफ़ भी तुम्हारा दोस्त है ... ?"
"हां भाभी, और फ़िरोज भी है ... " मैने फ़िरोज का नाम और जोड़ दिया
"हाय रे, बानो ... मुझे भी अपनी टोली में मिला लो ना ... " भाभी चुदते हुये बोली।
"भाभी चलो, अब हम भी तीन और ये भी तीन ... नसीम को भी बताना चाहिये !"
"नसीम भी ... ।" भाभी तो इतने सारे चुदाई के साथी मिल जायेंगे यकीन भी नहीं हो रहा था। भाभी चुदवा कर मदमस्त हो रही थी। उसे लण्ड क्या मिला मानो दुनिया मिल गई हो। वो बहुत ही उत्तेजित हो कर आनन्द ले रही थी। मैंने गाण्ड में अंगुली पेलना चालू रखा, दोनों ही डबल मार से बहुत उत्तेजित हो गये थे ... अब्दुल सटासट लण्ड चला रहा था। अब्दुल का लौड़ा कड़कने लगा था, उसका डण्डा लोहे जैसा हो गया था। दोनों की कमर एक तालमेल के साथ तेजी से चल रही थी। चूत गीली होने से फ़च फ़च की आवाजें भी सुनाई पड़ रही थी। उत्तेजित भाभी के जिस्म में ऐंठन होने लगी थी।
मैंने भाभी और अब्दुल की गाण्ड में से अंगुली निकाल दी और भाभी की चूंचियां और निपल मसलने लगी, भाभी के मुँह से एक गहरी आह निकली और उसकी चूत ने रस छोड़ दिया। इधर अब्दुल भी लण्ड का जोर लगा कर वीर्य छोड़ने की कोशिश कर रहा था। मैं भाभी को छोड़ कर अब्दुल के चूतड़ों को दबा कर मसलने लगी। ... बस अब्दुल ने अपना लौड़ा बाहर निकाला और पिचकारी छोड़ दी। मैंने तुरन्त उसका लौड़ा मुठ में भर लिया और उसे निचोड़ने लगी और मुठ मार मार कर बाकी का वीर्य बाहर निकालने लगी। भाभी नीचे पडी हांफ़ रही थी और अब अब्दुल भी ठण्डा पड़ रहा था।
"भोसड़ी के ... अब ऊपर से तो हट जा भाभी के ... " मैने अब्दुल को पीछे खींचा।
अब्दुल खड़ा हो गया। भाभी भी उठ बैठी। भाभी ने पेटीकोट नीचे किया और मुझसे लिपट पड़ी।
"बानो, शुक्रिया इस शानदार चुदाई का ... एक बात कहूँ ? प्लीज मना मत करना ... !"
"हां बोलो ... नज्जो भाभी ...! "
"मुझे भी, अपने दोस्तों में शामिल कर लो ... फ़िरोज, हाय कितना चिकना है ... युसुफ़ का लौड़ा तो सोलिड है और अब्दुल तो कितना प्यारा है !"
"भाभी ... फिर तो आप रोज चुदोगी, होशियार ... भैया को भूल जाओगी ...! " मैंने भाभी को मजाक में कहा।
"हाय बानो ... ये लो मैंने तो पेटीकोट अभी से ऊपर उठा दिया ... चोदो ... मुझे जी भर कर चोदो !"
हम तीनों ही हंस पड़े ... और फिर सभी दोस्त बन गये । चुदाई सिलसिला शुरू हो गया ... भला चढ़ती जवानी के जोश को कोई रोक सका है ... ।

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