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मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012

मर्द की ग़ुलाम



दोस्तो, अन्तर्वासना पर मैंने बहुत कहानियाँ पढ़ीं। बेहद मज़ा आया। सेक्स सिर्फ चुदाई का नाम नहीं है। चुदाई को मसालेदार बनाने के लिए कुछ नया करना पड़ता है। सचमुच मुझे सेक्स में प्रयोग करने में बहुत मज़ा आता है। मैं और मेरे उन्होंने सेक्स में बहुत सारे खेल खेले हैं। उसी प्रकार के खेल के एक हिस्से को मैं आपके सामने पेश कर रही हूँ। अच्छी लगे तो अपने साथी के साथ अपने यौन-जीवन को रंगीन बनाइए।
मेरे मन में मर्द की गुलामी, हर पल चुदाई की बातें चलती रहतीं थीं।
बात उन दिनों की है जब ऑफिस में काम करते हुए मुझे लगा कि मेरा साथी राजीव मुझ में कुछ अधिक ही रुचि दिखा रहा है। धीरे-धीरे मैं उसकी तरफ खिंचती चली गई। हम घंटों साथ रहने लगे।
एक दिन हमें डेट पर जाना था। मैं दो घंटे देर से पहुँची। राजीव बहुत नाराज़ था। मैंने उसे मनाने की कोशिश की। उसका लहज़ा उस वक्त काफी सख्त था। मैंने कान पकड़ कर माफी माँगी। इस पर उसने कहा "तुम जैसी लड़कियों को तो सज़ा मिलनी चाहिए, तभी तुम सुधर सकती हो।"
"राजीव मैं तुम्हारी हूँ, तुम जो सज़ा देना चाहो, दे सकते हो।" मैंने उसे मनाने के लिए कहा।
राजीव ने मेरी छातियों को कसकर मसला तथा मेरी गाँड पर थपाथप ५ चाँटे जड़ दिए। मुझे दर्द तो हुआ, लेकिन मर्द की सख्ती का एहसास पहली बार हुआ। मैं राजीव से बुरी तरह से लिपट गई। राजीव मुझे अपने कमरे पर ले गया।
कमरे में पहुँचते ही राजीव शेर की तरह गुर्राने लगा,"साली, कुतिया... मैं तेरा मालिक हूँ, तू मेरी ग़ुलाम है। मैं तुझे जैसे चाहूँ, वैसे रखूँगा... समझी।"
मैं बुरी तरह से डर गई, लेकिन मुझे कुछ-कुछ हो रहा था। राजीव की बातों में मैं मस्ती ले रही थी। मैं कुतिया की तरह चारों हाथ-पैरों पर झुकी तथा राजीव के पैरों को चूमकर बोली,"मालिक, मैं पूरी तरह से तुम्हारी हूँ, जो चाहो सो करो।"
राजीव ने मुझे पूरी तरह से नंगा कर दिया तथा ख़ुद भी नंगा होकर खड़ा हो गया। उसका १२ इंची लंड मुझे पागल बना रहा था। कुछ ही देर में राजीव ने मुझे कुतिया की तरह गले में पट्टा पहना दिया और एक ज़ंजीर से बाँध दिया। मैं पागल कुतिया की तरह उसका लंड चूस रही थी। मोटा लंड मेरे मुँह में समा नहीं पा रहा था।
अब राजीव ने हाथ में एक मोटा डंडा ले लिया। राजीव का लंड मेरे मुँह में था। राजीव ने डंडे की बाछौर मेरे चूतड़ों पर कर दी। मैं दर्द के मारे कराह उठी, लेकिन मुझे बड़ा मज़ा आया। मैं लंड चूसती रही। राजीव मेरे मुँह को चोदता रहा। उसके बाद उसने अपने संदूक में से रस्सी निकाली और मेरी दोनों छातियों को कस कर बाँध दिया। मैं दर्द से कराह उठी। यह तो अभी शुरुआत थी। राजीव ने हथकड़ी निकाल कर मेरे हाथों को मेरी गाँड के पीछे बाँध दिया।
अब मैं फिर से कुतिया बनी थी। मेरे हाथ बँधे हुए, कमर पर थे। राजीव ने अपना लंड मेरी गाँड की छेद पर रखा. उसके पैरों की ऊँगलियाँ मेरे मुँह के पास थी। बहनचोद, मादरचोद, कुतिया की बच्ची... मुझ पर गालियों की बौछार हो रही थी। राजीव ने मेरी गाँड पर थूक दिया और लंड अन्दर डालने लगा।
मैं चीख रही थी, मेरे हाथ पीठ पर बँधे थे। लंड तेज़ी से मेरी गाँड में चला गया। मैं राजीव के पैरों की ऊँगलियों को चूस रही थी। १५ मिनट तक मेरी गाँड फाड़ने के बाद राजीव ने मेरी चूत में लंड पेलना शुरु कर दिया। मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था।
"मेरे मालिक... मेरी गाँड फाड़ दो... चूत की धज्जियाँ उड़ा दो।" मैं चिल्ला रही थी।
राजीव में गज़ब का दम था। मैं पस्त हो चुकी थी। राजीव ने लंड को चूत से निकाल कर मेरे मुँह की तरफ कर दिया। एक बार फिर से राजीव मेरा मुँह चोदने लगा था। मैं ज़ोर-ज़ोर से लंड का पानी गिराने की कोशिश कर रही थी।
राजीव को झटका लगा। मेरे मुँह में माल गिरने लगा। झड़ने के बाद भी राजीव ने मुझे आज़ाद नहीं किया।
"प्लीज़ राजीव, मुझे घर जाना है। देर हो रही है, जाने दो" मैंने अनुमति मांगी।
राजीव ने मेरे गाल पर ज़ोरदार चाँटा मारा और उठाकर खड़ा कर दिया, हथकड़ी खोली, लेकिन मुझे फिर से कुतिया बना दिया। वो मुझे लेकर इस तरह टहल रहा था जैसे लोग अपने कुत्ते को सैर पर ले जाते हैं।
मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था कुतिया बनने में। १५ मिनट घुमाने के बाद राजीव मुझे अपने तहख़ाने में ले गया। वहाँ पर कुत्ते का एक पिंजरा रखा हुआ था। राजीव ने मुझे पिंजरे में जाने का इशारा किया। मैंने पिंजरे में जाने में आनाकानी की तो राजीव ने मेरे चूतड़ों पर ज़ोर की लात मारी।
मैं अपने चारों हाथों-पैरों से चलती हुए पिंजरे में पहुँच गई। राजीव ने पिंजरे में पानी का कटोरा रखा, फिर दरवाज़े में ताला जड़ दिया। अब मैं पूरी तरह से क़ैद थी। राजीव कुटिल मुस्कान बिखेरता हुआ बोला,"अब देखता हूँ साली, तू घर कैसे जाएगी।"
मैंने कहा,"मालिक, आप जब कहोगे, तभी घर जाऊँगी।"
राजीव मुझे उसी हालत में अकेला छोड़कर वहाँ से चला गया। थोड़ी ही देर में मेरे हाथ-पैरों में दर्द होने लगा। आधा घंटा होते-होते दर्द असहनीय होने लगा।
इतने में दरवाज़ा खुला। राजीव अन्दर आया,"कुतिया... कैसा लग रहा है। तुम्हें इसमें रहने की आदत डालनी होगी। जब तुम मेरी पूरी ग़ुलाम बन जाओगी तो पूरी रात इसी पिजरे में रखूँगा।"
पिंजरे का दरवाज़ा खुलने के बाद मैं जब बाहर निकली तो मुझे खड़ा होने में भारी मशक्कत करनी पड़ी। मैं पूरी नंगी हो राजीव के पीछे चलने लगी। बाथरुम में ले जाकर राजीव ने मुझे फिर से चोदा। इसके बाद मैं बाथरूम गई।
अब राजीव ने मुझे जाने की इजाज़त दे दी। कमरे से बाहर आने के बाद वो बदल गया। अब वो अपनी सख़्ती के लिए माफ़ी माँग रहा था। इतना दर्द होने के बाद भी मुझे वो सख़्त मर्द अच्छा लगा।
"राजीव, मैं तो मुझे माफ़ कर दूँगी, लेकिन तुम शादी के बाद भी मुझे इसी तरह से कुतिया बनाओगे?"
"श्योर" - राजीव ने कहा।
इसके बाद क्या हुआ, अगली कहानी में बताऊँगी।

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