मीटर गेज की ट्रेन थी, इसमें एयर कण्डीशन कम्पार्टमेन्ट में सिर्फ़ टू-टियर हीलगता था। कम्पार्टमेन्ट में चार बर्थ थी। सामने एक लगभग 45 वर्ष काव्यक्ति था और उसके साथ में एक जवान युवती थी, करीब 22-23 साल कीहोगी, साड़ी पहने थी। बातचीत में पता चला कि वो दोनों ससुर और बहू थे।
दिन का सफ़र था, मैं और मेरा देवर सामने के दो बर्थ में थे। बैठे बैठे मैं थकगई थी, सो मैं नीचे के बर्थ पर लेट गई। सामने भी वो युवती बार बार हमें देखरही थी, फिर उस व्यक्ति को देख रही थी। मेरी आंखे बंद थी पर कभी कभी मैंउन्हे देख लेती थी। मेरा देवर आंखे बंद किये ऊंघ रहा था।
अचानक मुझे लगा कि सामने वो आदमी युवती के पीछे हाथ डाल कर कुछकर रहा है। मुझे शीघ्र ही पता चल गया कि वो उसकी कमर में हाथ डाल करउसे मल रहा था। वो बार बार उसे देख रही थी और उस पर झुकी जा रही थी,जाहिर था कि युवती को मजा आ रहा था।
मैंने अपनी आँखें कुछ इस तरह से बंद कर रखी थी कि सोई हुई प्रतीत हो।कुछ ही देर में उस आदमी ने उसकी चूंची दबा दी। उस युवती ने अपना हाथउसके लण्ड पर रख दिया और बड़ी आसक्ति से उसे देखने लगी।
मेरे मन में भी तरंगें उठने लगी, मेरे तन में भी एक हल्की अग्नि जल उठी।मैंने चुपके से देवर को इशारा किया। देवर ने नींद में ही सामने देखा औरस्थिति भांप ली। थोड़ी ही देर में देवर भी गरम हो उठा। उसका लण्ड भी उठनेलगा। उसने भी अपना हाथ धीरे से मेरी चूंचियों की तरफ़ बढ़ा दिया। मेरीबाहों के ऊपर से उसका हाथ रेंगता हुआ मेरे स्तन पर आ टिका, जिसे उसव्यक्ति ने आराम से देख लिया।
हमें भी इस हालत में देख कर वो कुछ खुल गया और उसने उस युवती कीसाड़ी के अन्दर हाथ घुसा दिया। लड़की उस आदमी पर लगभग गिरी सी जारही थी, और उसे बड़ी ही आसक्ति से देख रही थी मानो चुदना चाह रही हो।
मेरे देवर ने भी मेरी चूंचियों पर खुले आम हाथ फ़ेरना शुरू कर दिया। वोव्यक्ति अब मुस्करा उठा और उसने भी खुले आम उस लड़की के ब्लाऊज मेंहाथ डाल दिया और उसकी चूंचियाँ दबाने और मसलने लगा। यह देख कर मेरेदेवर ने मेरे ब्लाऊज में हाथ घुसा कर मेरी नंगी चूंचियाँ पकड़ ली।
अब मैं उठ कर बैठ गई और उस व्यक्ति के सामने ही देवर का लण्ड पैन्ट कीजिप खोल कर पकड़ लिया।
उस व्यक्ति ने देखा कि सभी अपने काम में लग गये हैं तो उसने लड़की कोलिटा दिया और उसके ऊपर चढ़ गया, अपना लण्ड निकाल कर उसकी साड़ीऊंची करके उसकी चूत पर लगा दिया। देवर भी मुझे लिटाने का प्रयास करनेलगा। मैंने उसे इशारे से मना कर दिया। उधर उस लड़की की आह निकल पड़ीऔर वो चुदने लगी थी। पर वो मर्द जल्दी ही झड़ गया।
देवर ने उसे इशारा किया तो उसने उसे सहमति दे दी। देवर ने उस लड़की कीटांगें ऊंची की और अपना कड़क लण्ड निकाल कर उसकी चूत में घुसा दिया।
मैं बड़ी उत्सुकता से देवर को चोदते हुए देख रही थी। सिसकियों का दौर जारीथा। कुछ ही देर में वो दोनों झड़ गये। चुदने के बाद हम सभी आराम से बैठगये। वो लड़की मेरे देवर को बहुत ही प्यार भरी नजरों से देख रही थी। देवर सेरहा नहीं गया तो वो उठा और उसे चूम लिया और उसके स्तन एक बार दबादिये।
शाम ढल आई थी, ट्रेन स्टेशन पर आ चुकी थी। आगरा फ़ोर्ट आ चुका था।मेरा देवर बोगी के दरवाजे पर खड़ा था। गाड़ी के रुकते ही हम अपने थोड़े सेसामान के साथ उतर पड़े। देवर ने सामान अपने साथ ले लिया और हमस्टेशन के बाहर आ गये। एक टेम्पो लेकर पास ही एक होटल में आ गये।रास्ते भर वासना का खेल देखते हुए और मेरे अंगो से छेड़छाड़ करते हुएआगरा पहुँचे थे। इतनी छेड़छाड़ से मैं उत्तेजित भी हो गई थी। मुझे ऐसामहसूस हो रहा था कि बस अब कोई मेरे उभारों के साथ खूब खेले और मुझेमस्त कर दे।
होटल के बिस्तर पर आते ही मैंने अपनी साड़ी खोल कर एक तरफ़ फ़ेंक दीऔर मात्र पेटीकोट और ब्लाऊज में लेट गई।
मेरा देवर मुझे बड़ी उत्सुकतापूर्वक निहार रहा था। मेरी छातियाँ वासना सेफूल और पिचक रही थी। छातियों का उभरना और सिमटना देवरजी को बड़ाही भला लग रहा था। वो मेरे पास ही बैठ कर मेरे सीने को एकटक निहारनेलगा।
मेरी आंख अचानक ही खुल गई। देवर को यूँ घूरते देख कर मैं एक बार फिरसे वासना में भर गई। मैं झट से उठ कर बैठ गई। पर इस बात से अनजानकि मेरे ब्लाऊज के दो बटन खुल चुके थे और मेरी गोल गोल उभार ब्रा केसाथ बाहर झांकने लगे थे। देवर का हाथ मेरे उभारों की तरफ़ बढ़ने लगे। जैसेही उसके हाथ मेरे ब्लाऊज पर गये, मैंने उसके हाथ पकड़ लिये,"देवर जी...हाथ दूर रखिये... क्या इरादा है?" मैंने तिरछी नजरो से उसे निहारते हुएकहा।
देवर एकदम से हड़बड़ा गया,"भाभी, मैं तो ये बटन बंद कर रहा था !" परउसका लण्ड तो खड़ा हो चुका था, इसलिये मैं तो यही समझी थी कि वो मेरेछातियां मसलना चाहता है। फिर मर्द नाम का तो वही था मेरे सामने, औरउस ट्रेन में लड़की को चोद ही चुका था। मैंने तिरछी निगाहों से उसे देखा औरउठ खड़ी हुई और बोली,"तो लगा दे बटन... !"
देवर ने मेरे इशारे को समझ लिया और मेरे ब्लाऊज का बटन लेकर मेरे स्तनदबाते हुए लगाने लगा।
"भाभी ब्लाऊज तो टाईट है...!"
"तो दबा कर लगा दे ना !" मैंने अपने उभारो को थोड़ा और उभार दिया। देवरसे रहा नहीं गया और उसके दोनों हाथों ने मेरे स्तनों को घेर लिया और अपनेहाथों में कस लिया।
"हाय रे देवर जी... इन्हें तो छोड़ो ना... ये ब्लाऊज थोड़े ही है...!" मैंने उसेहल्का सा धक्का दे दिया और हंसती हुई बाथ रूम में चली गई। देवर मुझेप्यासी नजरों से देखता रह गया। मैंने अच्छी तरह नहाया धोया और फ़्रेश होकर बाहर आ गई। कुछ ही देर में देवर भी फ़्रेश हो गये थे। उसके हाथ अभी भीमेरे अंगों को मसलने के लिये बैचेन हो रहे थे। उसके हाथ कभी मेरे चूतड़ों परपड़ते थे और कभी किसी ना किसी बहाने छाती से टकरा जाते थे।
हम दोनों तैयार हो कर नीचे खाना खाने आ गये थे। रात के नौ बज रहे थे,हम बाहर होटल के बाग में टहलने लगे। मेरा मन तो देवर पर लगा था । मनही मन देवर से चुदने की योजना बना रही थी। मेरे तन बदन में जैसे आग सीलगी थी। तन की अग्नि को मिटाना जरूरी था।
मैंने देवर के चूतड़ों पर हाथ मार कर देखा तो पता चला कि उसने अंडरवियरनहीं पहनी थी। उसके नंगे से चूतड़ो का मुझे अहसास हो गया था।
मैंने भी पजामे के नीचे पेंटी और कुर्ते के अन्दर ब्रा नहीं पहनी थी। बाग मेंघूमते घूमते मैंने कहा,"देवर जी, मैं एक चीज़ बताऊँ...!"
"हां बताओ ..." उसने उत्सुकता से पूछा।
"पहले आंखें बंद करो... फिर एक जादू बताती हूँ..." मैंने शरारत से कहा।मेरी वासना उबल रही थी।
उसने आंखें बंद कर ली। मैंने अपना हाथ धीरे से उसके उठते हुए लण्ड पर रखदिया,"देवर जी आंखें बंद ही रखना... प्लीज मत खोलना ...!" धीरे से मैंनेउसके लण्ड पर कसाव बढ़ा दिया
"आह... भाभी...!" उसके मुख से आह निकल पड़ी।
"देखो आंखें नहीं खोलना... तुम्हे मेरी कसम...!" और लण्ड को हौले से उपरनीचे करने लगी।
"सी सीऽऽऽऽऽऽ... आह रे..." उसकी सिसकारियाँ फ़ूट पड़ी।
"तुम्हें मेरी कसम है... आंख बंद ही रखना...!" मैंने सावधानी से बाग मेंइधर उधर देखा, और पजामे में हाथ घुसा कर उसका नंगा लण्ड थाम लिया।बस मसला ही था कि कुछ आहट हुई, मैंने तुरन्त ही हाथ बाहर खींच लिया।देवर की आंखें खुल गई,"भाभी, मैं कोई सपना देख रहा था क्या ?"
"चुप भी रहो... बड़ा आया सपने देखने वाला... अब चलो कमरे में..." मैंनेउसे झिड़कते हुए कहा ।
हम दोनों वापस कमरे में आ गये। डबल बेड वाला कमरा था। देवर बड़ी आसलगाये मुझे देख रहा था। पर मैंने अपने बिस्तर पर लोट लगा दी और आंखेंबंद करके लेट गई। देवर ने बत्ती बुझा दी। मैं इन्तज़ार करती रही कि इतनाकुछ हो गया है, देवर जी चोदे बिना नहीं छोड़ेंगे। पर बस मैं तो इन्तज़ार हीकरती रह गई। उसने कुछ नहीं किया। अंधेरे में मैंने उसे देखने का प्रयासकिया, पर वो तो चित्त लेटा आंखें बंद किए हुए था।
मुझे कुलबुलाहट होने लगी, चूत में आग लगी हुई थी और ये लण्ड लिये हुएसो रहा था। अब मैंने सोच लिया था कि चुदना तो है ही। मैंने धीरे से अपने पूरेकपड़े उतार लिये। फिर देवर के पजामे का नाड़ा धीरे से खींच कर ढीला करदिया और पजामा नीचे खींच दिया। उसका लण्ड सीधा तना हुआ खड़ा था।यानि उसका लण्ड मुझे चोदने के लिये तैयार था।
मैं धीरे से उठी और देवर के ऊपर चढ़ कर बैठ गई। उसके लण्ड को सीधे हीअपनी चूत से लगा दिया और धीरे से जोर लगा दिया। उसका लण्ड फ़क सेअन्दर घुस गया। देवर या तो पहले से ही जगा हुआ था या आधी नींद मेंथा... झटके से उसकी आंख खुल गई। पर देर हो चुकी थी। मैंने उसके जिस्मपर कब्जा कर लिया था और उसके ऊपर लेट कर उसे जकड़ लिया था।
मेरी चूत जोर लगा कर उसके लण्ड को लील चुकी थी।
"अरे...रे... भाभी... ये क्या... हाय रे... " उसके लण्ड में मीठी मीठीगुदगुदी हुई होगी। उसके हाथ मेरी कमर पर कसते चले गये।
"देवर जी, नींद बहुत आ रही है क्या...? फिर तेरी भाभी का क्या होगा...?"
"मैं तो समझा था कि आप मुझसे सेक्सी मजाक कर रही हैं... !"
"हाय... देवर जी... लण्ड और चूत में कैसी दोस्ती... लण्ड तो चूत को मारेगाही...!"
"भाभी, आप बड़ी प्यारी है... मेरा कितना ध्यान रखती है... आह रे... लण्डके ऊपर बैठ जाओ ना...!"
देवर ने बत्ती जला दी। मैं अपनी पोजीशन बदल कर खड़े लण्ड पर सीधे बैठगई। लण्ड चूत में जड़ तक उतर गया और पैंदे से टकरा गया। हल्का सा दर्दहुआ। उसके हाथ आगे बढ़े और मेरी चूंचियों को अपने कब्जे कर लिया औरउन्हें मसलने लगा। मेरा जिस्म एक बार फिर से मीठी आग में जल उठा। मैंधीरे से उस पर लेट गई और हौले हौले चूत ऊपर नीचे करके लण्ड को अन्दरबाहर करके स्वर्गीय आनन्द लेने लगी।
उसके होंठों को अपने होंठों में दबा लिया और सिसकारी भर भर कर हिलतेहुए चुदने लगी। देवर भी वासना भरी आहें भरने लगा। पर देवर ने जल्दी हीमुझे कस कर लपेट लिया और और एक कुलांची भर कर ऊपर आ गया। मुझेउसने दबा लिया।
पर अब उसके लण्ड का निशाना मेरी गाण्ड थी। इशारा पाते ही मैंने अपनीगाण्ड थोड़ी सी ऊंची कर ली । बस फिर तो राही को रास्ता मिल गया और मेरेचूतड़ों के पट खोलते हुए छेद पर आ टिका, उसने मेरी आंखों में आंखें डाल दीऔर आंखों ही आंखों में मुझे चोदने लगा। मैं उसके आंखों के वार सहतीरही... मेरी आंखें चुदती रही... और मेरे मुख से आह निकल पड़ी।
उसका प्यारा सा लण्ड मेरी गाण्ड में उतर गया। प्यार से वो मुझे आंखों सेचोदता रहा... उसकी ये प्यारी स्टाईल मुझे अन्दर तक मार गई। मेरी आंखोंमें एकटक देखने से पानी आ गया और मैंने अपने चक्षु धीरे से बन्द करलिये। मेरी गाण्ड लण्ड को पूरा निगल चुकी थी। गाण्ड की दीवार में तेजगुदगुदी चल रही थी। उसके धक्के तेज हो गये थे... लग रहा था कि उसकामाल निकलने वाला है।
मैंने उसे इशारा किया और उसके पलक झपकते ही लण्ड गाण्ड में से निकालकर चूत में फिर से पेल दिया। मेरा अन्तरंग आनन्द से नहा गया। चूत कीचुदाई स्वर्ग जैसी आनन्ददायी लग रही थी। मेरी चूत उछल उछल कर उसकासाथ देने लगी। मेरे जिस्म में तंरगें उठने लगी... सारा शरीर सनसनाहट सेभर उठा। सारा शरीर आनन्द से भर उठा। आंखे बंद होने लगी। देवर का लण्डभी मोटा प्रतीत होने लगा। दोनों ओर से भरपूर कसावट के साथ चुदाई होनेलगी।
लण्ड मेरी चूत में तरावट भर रहा था। मेरी चूत अब धीरे धीरे रस छोड़ने लगीथी। ... और अचानक उसका लण्ड अत्यन्त कठोर होकर मेरी चूत के पेंदे मेंगड़ने लगा और फिर एक गरम गरम सा अहसास होने लगा। उसका वीर्य मेरीचूत में भरने लगा। तभी मेरी चूत ने भी अंगड़ाई ली और उसके वीर्य में अपनारस भी उगल दिया। दोनों रस एक हो गये और चूत में से रिसने लगे।
देवर ने मुझे कस कर दबोच रखा था और चूतड़ को दबा दबा कर अपना वीर्यनिकाल रहा था। मैं भी चूत को ऊपर उठा कर अपना पानी निकाल रही थी।देवर ने पूरा वीर्य चूत में खाली कर दिया और उछल कर खड़ा हो गया। मैंनेभी सन्तुष्ट मन से करवट बदली और गहरी नीन्द में सो गई। सुबह देर से उठीतब तक देवर उठ चुका था। मुझे जगा हुआ देख कर उसने मेरी टांगें ऊपर कीऔर मेरी चूत को खोल कर एक गहरा चुम्बन लिया।
"घर में भाभी का होना कितना जरूरी है यह मुझे आज पता चला...! हैना...?" देवर ने प्यार से देखा।
"हां सच है...पर देवर ना हो तो भाभी किससे चुदेगी फिर... बोलो...?" हमदोनों ही हंस पड़े और बाहर जाने की तैयारी करने लगे...।
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